Friday, June 15, 2012

नाजों से पाले ख्वाब रात हुए नहीं ढलते!



ख्वाब 


उम्मीद जब मुरझाई
पतझड़ बारिशों ने धुल दी.

गारे को फिदरत से सम्हालो
छैनी हौले से थामो
यकीं करो
नाजों से पाले ख्वाब
रात हुए नहीं ढलते!


जात 


मौसम सुहाना था,
बादल दीवाना था,
हँस दिया बादल
छलक पड़ी बूँदें!

.....और बूंदों ने भिगोने से पहले
मेरी 'जात' पूंछ ली!


तुम्हें पता है?


तुम्हें पता है,
तुम्हारा हमराह बन 
नहीं रहूँगा पास हमेशा.....

लेकिन तुम्हें पता है?
तुम्हारे पास नहीं पर
तुम्हारे साथ तो रहूँगा!

हाँ, हमें पता है,
साथ रहने के लिए हमें
पास रहना ज़रूरी नहीं!


धोखेबाजी 


हथेली थामे चल रहे थे ना,
लिए ढेर सारे ख्वाब और कुछ उम्मीदें!

देखो 
उसी हथेली की रेखाओं ने
हमें नदी सा मोड़ दिया.....
कभी ना मिलने के लिए!!