Sunday, September 8, 2024

प्रेग्नेंसी


1.

जोर से गले भी नहीं लगा पा रहा आजकल

तुम्हारा पिट्टू बीच में आ जाता है

बात बात पे जो धोल जमा देते थे पीठ पे

वो भी नहीं हो पा रहा

न ही बगल में बैठे बैठे

कंधे से धक्क् कर दिया करता था, वो ही।


तुम्हारे पिट्टू को चूमकर

को असीम खुशी मिलती है

इस सुख में सबकुछ भूल जाता हूं

वो लफ्जों में नहीं कह पाऊंगा


हां, तुम ही कहती थीं "दौड़ा करो."

अब स्ट्रेन आ गया है पांव में

अब तुम्हारे मूड स्विंग्स पे

पेम्पर भी नहीं कर पा रहा

न कुछ अच्छा बना खिला पा रहा हूं।

अब भुगतो मुझे दौड़ाने का नतीजा!


तुम गोलू हो गई हो

तुम पर प्यार बहुत आता है

तुम डांटने भी बहुत लगी हो इसलिए

जताने से डर भी लगता है


चौपाटी पर गोलगप्पे खिलाना चाहता हूं

लेकिन मन को मना कर देता हूं

स्वस्थ होना जरूरी है न तुम्हारा

किसी दिन उलझी सी दिखती हो

तो बाल संवारकर सब ठीक होगा कहने का मन होता है

कल से ऑफिस न जाना कई बार कहने का मन होता है

लेकिन तुम खुद को बेहतर जानती हो।


कभी कहा नहीं लेकिन

ड्राई फ्रूट्स शेक टेस्टी नहीं लगता

साथ देने पी जरूर लेता हूं

कभी कहा नहीं लेकिन

"शुक्रिया" तुम्हारा 'तुम' होने के लिए

जैसे हो वैसा होने के लिए

और सबसे ज्यादा

मेरे साथ होने के लिए

और इतनी सारी खुशी देने के लिए।

देखो सीधे सीधे कहना नहीं आता इसलिए 

इतनी बड़ी नज़्म लिखनी पड़ी।

--**--

2.

मेरी सारी टी-शर्ट, सारे ट्रैक पेंट्स

तुम्हारे हो गए हैं,

कुछ तो अब मुझे भी ढीले हो जायेंगे

मेरे लिए नए कपड़े खरीदना अब तुम्हारी जिम्मेवारी होगी।


लेट नाइट मैग्गी की क्रेविंग बहुत होती है

हर बार नहीं बनाऊंगा


कितने फ्रूट्स खा रही हो

सेब सी गोलू होती जा रही हो।


हॉरर फिल्म के लिए न 

एक्शन फिल्म के लिए न 

लव स्टोरीज़ से बोर नहीं हो गई हो?

(कितना ख्याल रखती हो,

कि आनेवाले बच्चे पर इनका बुरा असर न पड़े!)


कभी कभी पलटकर

तुम्हें चूम लेना चाहता हूं,

कभी तुम्हारे पिट्टू को...


तुम्हारा साथ और ये अनुभव

“It's not the destination, it's the journey”

के मायने ज्यादा समझने लगा हूं।


तुम्हारे बालों में उंगलियां फिरा

कभी कभी कहना चाहता हूं

"शुक्रिया"

तुम्हारे पिट्टू पर हाथ रख

पढ़ना चाहता हूं इबादतें

'तुम्हारे साथ होने को'

'मुकम्मल' लफ्ज़ से बदल देना चाहता हूं।

--**-- 

3.

'वी आर प्रेग्नेंट' कितना नया शब्द है न!

'ईश्वर औरत को देता है सज़ा कर्मों की

इसलिए होता ये ये असहनीय दर्द बच्चा जनने पर.'

'औरत कितनी भी कोशिशें कर ले मोक्ष नहीं पा सकती है,

जन्मना होगा उसे पुनः पुरुष रूप में!'


कितनी ही कहानियां हैं

जो आधी आबादी को दोयम दर्ज़े का नागरिक बनाने पे तुली रहीं.


'वी आर प्रेग्नेंट' कितना नया शब्द है न!

सभ्यता को तीन हज़ार साल लग गए यह समझने में

जबकि सबसे शुरू से पता था

कि पुरुष बच्चे नहीं जन सकते.

--**-- 

4.

वो कंधे पे सर रख अपने दिन की थकान मिटाती है

बहुत सारा बतियाती है

ऑफिस की पूरी कहानी सुनाती है

फिर पिट्टू को पकड़ मैगी की डिमांड है

मैं उसका पिट्टू चूम लेता हूं

बच्चा किक करता है और हम खिलखिला उठते हैं

प्रेग्नेंसी कितनी खूबसूरत है न!

- - 

वो थक गई है

मैं उसके पैर दबाता हूं

वो मेरा हाथ पकड़ सो जाती है

मैं उसके गहरी नींद में जाने का इंतजार करता हूं

फिर चादर उड़ाते सोचता हूं

प्रेग्नेंसी कितनी खूबसूरत है न!

-- 

लेबर रूम में विदा करते वो

कसकर मेरा हाथ पकड़े है

जैसे कह रही हो

सब ठीक होगा ना? 

मैं सबके सामने उसे चूम लेता हूं

"हां न बच्चा सब ठीक होगा"


नन्हीं सी जान और उसकी मां

दोनों की प्रेमल आंखें

दोनों मुस्कुरा रहे हैं कुछ घंटों बाद!


बच्चा जैसे कहता है

'मैं खूबसूरत हूं ना?'


"और प्रेग्नेंसी कितनी खूबसूरत है न!" मैं जवाब देता हूं।


Saturday, May 4, 2024

मुझसे प्यार करने के बाद


 मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

इतराने लगोगी हर कविता पर

हर लफ्ज़ में समाने लगोगी मुझे

तस्वीरों से समा जायेंगे

साथ बिताए पल

और शताब्दी के अंत तक याद रह जायेगी हर एक छुअन.


मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

टटोलोगी मुझे किताबों में

जिन्हें हमने साथ पढ़ा था

उन बातों में

जिन्हें हमने साथ कहीं थी

बुदबुदाओगी मुझे

और पास आने को ललचाओगी

जब भी मैं दूर होऊंगा.


दरवाजे की हर दस्तक में

मेरे आने का इंतजार होगा

नींद में चूम लेने की लालसा

जब नहीं होऊंगा पास

तुम्हारे होंठ सूख जाएंगे याद में

नींद हो जायेगी बेझिल

चांद खाओगी भूख में

दुहराओगी मेरा नाम.


मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा

सच को सच कहना समझोगी 

सहन को साहस में बदल दोगी

तुम युद्धरत तो हमेशा से थीं हर कठनाई से

ज़रा और जोर से लड़ना सीख जाओगी 

दुनिया सिर्फ मर्द की नहीं है

बराबरी के हक का पता चलेगा तुम्हें

सीने से खुद को लगाना सीखोगी

और दुनिया को अनुभव से तौलोगी.


तुम्हारी पीठ पर जितनी कविताएं लिखूंगा

सब तुम्हारे सीने में जमा हो जाएंगी

तुम्हारे माथे को चूम

जितने भी सूरज उगाऊंगा

तुम्हें ताउम्र प्रज्ज्वल करेंगे

और जो नज़्में हम साथ लिखेंगे

उनका हर लफ्ज़ चूमोगी.


तुम तुम नहीं रह जाओगी

तुम्हारा होना और भी प्रदीप्त हो जायेगा

ज्यादा निष्पाप, शांत, सरल,

कांटों के बीच युद्धरत गुलाब

प्रेम यही सब बदलाव तो हमारे अंदर लाता है


 मुझसे प्यार करने के बाद तुम्हारा पहले जैसे कुछ भी नहीं रह जाएगा।


(बांग्लादेशी कवि हुमायूं आजाद की कविता से प्रेरित)

इक पत्र और प्रेम कविताएं



 मैंने कहा "तुम जहां हो

वहां तुम्हारा होना 

एक क्रांति है।"


"नहीं, मेरा होना ही 

एक क्रांति है।"

लड़की ने प्रत्युत्तर दिया।


**


किताबों में उलझा

एक वीरानापन है।


कैसे तुम्हें समझाऊं

तुम्हारा दुनिया में होना ही अपनापन है।


**


एक रात तुम लौट आना

शहर से लौटता है कोई गांव जैसे


वैसे शहर से कोई

फिर स्थाई तो नहीं लौटा है गांव

ह्वंगसांग से सारे

यात्री की तरह लौटते हैं गांव


पर एक रात तुम लौट आना

अपने होने की यात्रा पर।


**


तुनहरे हाथों में गुदगुदी होती तो होगी

मेरी याद अभी भी वहां सोती तो होगी

दवा नीम सी बिखरी है चेहरे पे तुम्हारे

मेरी याद बुखार में राहत देती तो होगी।


**


मैंने नहीं चाहा कि

कभी पीली साड़ी को उतारो तुम

पतझड़ में बसंत होती हो

मेरा मन-तरंग खिल जाता है


तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा

पीला सूट

खुले बाल

तुम्हें भगवान ने पीली साड़ी में ही बनाया होगा।


**


जो तुम्हें

पाठ्यक्रम में सिखाया जाएगा


वो तुम्हें कभी

वह नहीं बनाएगा

जो तुम बनना चाहते हो


या कि ईश्वर तुम्हें बनाना चाहता था.



**


एक दिन जब ईश्वर

खुद धान रोपेगा


तो खुद न्यूनतम समर्थन मूल्य

बढ़ाने चला आयेगा.


धरती पे बैठे लोगों को तो

धान कैसे उगती है

कभी समझ नहीं आयेगा!


**


तुम जीता जागता प्रेमपत्र हो.


**


मृत्यु से भी ज्यादा

बदतर होना कुछ देखा है?


क्या ढोया है

वह बोझ


असफलता, 

निःसंतानता,

बेरोजगारी


इससे भी बड़ा बोझ है

अपनी संतान से आंखें न मिला पाना


और उस गलती के लिए

जो तुमने कभी की ही नहीं थी!


**



मुझे पूछना था तुमसे

कि किरदार जिनमें तुम 

रम जय करते थे


उन्हें 

जिस्म से बाहर कैसे निकाला करते थे?


मैं तो जिस किरदार में हूं

वर्षों से वही ढो रहा हूं।


(इरफ़ान के लिए)

निर्मला पुतुल की प्रसिद्ध कविता


बाबा! 


मुझे उतनी दूर मत ब्याहना 


जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर 


घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें 


मत ब्याहना उस देश में 


जहाँ आदमी से ज़्यादा 


ईश्वर बसते हों 


जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँ 


वहाँ मत कर आना मेरा लगन 


वहाँ तो क़तई नहीं 


जहाँ की सड़कों पर 


मन से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटरगाड़ियाँ 


ऊँचे-ऊँचे मकान और 


बड़ी-बड़ी दुकानें 


उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता 


जिस में बड़ा-सा खुला आँगन न हो 


मुर्ग़े की बाँग पर होती नहीं हो जहाँ सुबह 


और शाम पिछवाड़े से जहाँ 


पहाड़ी पर डूबता सूरज न दिखे 


मत चुनना ऐसा वर 


जो पोचई और हड़िया में डूबा रहता हो अक्सर 


काहिल-निकम्मा हो 


माहिर हो मेले से लड़कियाँ उड़ा ले जाने में 


ऐसा वर मत चुनना मेरी ख़ातिर 


कोई थारी-लोटा तो नहीं 


कि बाद में जब चाहूँगी बदल लूँगी 


अच्छा-ख़राब होने पर 


जो बात-बात में 


बात करे लाठी-डंडा की 


निकाले तीर-धनुष, कुल्हाड़ी 


जब चाहे चला जाए बंगाल, असम या कश्मीर 


ऐसा वर नहीं चाहिए हमें 


और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ 


जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाए 


फ़सलें नहीं उगाईं जिन हाथों ने 


जिन हाथों ने दिया नहीं कभी किसी का साथ 


किसी का बोझ नहीं उठाया 


और तो और! 


जो हाथ लिखना नहीं जानता हो ‘ह’ से हाथ 


उसके हाथ मत देना कभी मेरा हाथ! 


ब्याहना हो तो वहाँ ब्याहना 


जहाँ सुबह जाकर 


शाम तक लौट सको पैदल 


मैं जो कभी दुख में रोऊँ इस घाट 


तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम 


सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप 


महुआ की लट और 


खजूर का गुड़ बनाकर भेज सकूँ संदेश तुम्हारी ख़ातिर 


उधर से आते-जाते किसी के हाथ 


भेज सकूँ कद्दू-कोहड़ा, खेखसा, बरबट्टी 


समय-समय पर गोगो के लिए भी 


मेला-हाट-बाज़ार आते-जाते 


मिल सके कोई अपना जो 


बता सके घर-गाँव का हाल-चाल 


चितकबरी गैया के बियाने की ख़बर 


दे सके जो कोई उधर से गुज़रते 


ऐसी जगह मुझे ब्याहना! 


उस देश में ब्याहना 


जहाँ ईश्वर कम आदमी ज़्यादा रहते हों 


बकरी और शेर 


एक घाट पानी पीते हों जहाँ 


वहीं ब्याहना मुझे! 


उसी के संग ब्याहना जो 


कबूतर के जोड़े और पंडुक पक्षी की तरह 


रहे हरदम हाथ 


घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर 


रात सुख-दुख बाँटने तक 


चुनना वर ऐसा 


जो बजाता हो बाँसुरी सुरीली 


और ढोल-माँदल बजाने में हो पारंगत 


वसंत के दिनों में ला सके जो रोज़ 


मेरे जूड़े के ख़ातिर पलाश के फूल 


जिससे खाया नहीं जाए 


मेरे भूखे रहने पर 


उसी से ब्याहना मुझे!

 

Friday, March 8, 2024

Shaurya Gatha: The book

 इस किताब में ऐसी बहुत सारी जगहें हैं जहां पर आप लिख सकते हैं। पढ़ते पढ़ते अगर आपको कुछ लिखने का मन कर जाए तो लिखिए... किताब का उद्देश्य यही है।

यकीं से कह सकता हूं जब आप इस किताब से बाहर आएंगे तो बच्चों के प्रति थोड़े ज्यादा वात्सल्य से भरे होंगे, थोड़े ज्यादा प्रेमल और कोमल हो चुके होंगे।
बच्चों की दुनिया बरकरार रहे, उतनी ही मासूम रहे, हर बच्चे का बचपन ज्यादा खूबसूरत बने... इसी उम्मीद के साथ यह आप सबको समर्पित...

किताब अब ऑनलाइन अवेलेबल है. खरीदने का लिंक:-

   AMAZON



Thursday, March 7, 2024

शौर्य गाथा 112.

 भाईसाहब की पेंटिंग स्किल्स बेहतर होती जा रही हैं, साथ ही अब वे दीवारों को अपना कैनवास भी कम बना रहे हैं, इसलिए मम्मा पापा ने भी चैन की सांस ली हुई है.

भाईसाहब ने सेंटर टेबल पर crayons से बहुत अच्छी आकृति बनाई है. पापा को ये बहुत प्यारी लगती है "बेटा ये क्या बनाया? अब्स्ट्रैक्ट आर्ट है?"
भाईसाहब: "पापा मैंने अपनी ताल (Car) के लिए लोड (Road) बनाया है. अले! लोड नहीं था न, तो आदे तैसे जाती!!"
भाईसाहब प्यारी सी जुबां में बिलकुल सटीक जवाब देते हैं. पापा उनकी समझदारी देखकर अचरज में हैं!

Friday, March 1, 2024

शौर्य गाथा 111.

 पापा भाईसाहब को सुलाने की कोशिश कर रहे हैं। "बेटा क्लोज योर आईज़।" पापा बोलते हैं।

भाईसाहब तुरंत आंख बंद कर लेते हैं। फिर पापा से बोलते हैं "पापा, बोलो ओपन योर आईज़।"
पापा बोलते हैं "ओपन योर आईज़।"
भाईसाहब आंखें खोल लेते हैं।
भाईसाहब फिर बोलते हैं "पापा बोलो क्लोज योर आईज़।"
पापा "क्लोज योर आईज़।"
भाईसाहब आंखें बंद कर लेते हैं।
फिर खुद से ही 'ओपन योर आईज़', 'क्लोज योर आईज़' बोल बोलकर, गर्दन मटका मटकाकर आंखें बंद करना, खोलना शुरू कर दिया है।
पापा देख देखकर मुस्कुरा रहे हैं। थककर उन्होंने सुलाने के इरादे त्याग दिए हैं।

Tuesday, February 27, 2024

पापा के नोट्स 7


तुम्हारे साथ समय व्यतीत करना Treat सा है। तुम्हारे साथ पूरा एक हफ्ता बिना ऑफिस जाए मिलना मतलब मेरे लिए बहुत सारा सुकून और प्रेम मिलना है। तुम घर में सबको प्रेम से गले लगा रहे थे, सबसे बात कर रहे थे और अपनी तोतली प्यारी आवाज में मन मोह रहे थे।
जो लोग बोलते हैं दुनिया में प्रेम कम बचा है, उन्हें छोटे बच्चों को देखना चाहिए। हम बच्चों को समझदार और मेच्योर बनाने के चक्कर में दुनिया से प्रेम छीन रहे हैं। हम उन्हें एक ऊंचा आसमान देने के चक्कर में उनसे ज़मीन छीन रहे हैं। प्रतिस्पर्धा... एक दूसरे से आगे बढ़ने की है, जबकि एक दूसरे से अधिक प्रेम करने की होनी थी। हमें अधिक प्रेमल होना था... हम अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए और अब धूमिल हो रहे हैं।
मैं चाहूंगा दुनिया के अंत में प्रेम बचे... बस प्रेम। जब भी किसी बच्चे को देखता हूं मुझमें ऐसा होने की उम्मीद बढ़ जाती है।

Thursday, February 22, 2024

शौर्य गाथा 109

 पापा 5 सेकंड रूल वाले हैं। मतलब कोई भी खाने की चीज जमीन पर गिर गई है तो तुरंत उठा-पौंछकर खा सकते हैं।

मम्मा अपोजिट है। एक बार जमीन पर गिरी चीज मतलब 'अखाद्य' हो गई। भाईसाहब मां पर गए हैं।
एक बार भाईसाहब बेड पर से मखाना खा रहे हैं। एक मखाना इनके हाथ से बेड पर गिर जाता है। चूंकि नीचे गिर गया है इसलिए ये खा नहीं सकते और आसपास कुछ ऐसा है नहीं कि वहां अलग करके रख दिया जाए, इसलिए उठाते हैं और पापा के देकर कहते हैं "पापा खा लो, नीचे गिर गया था।" फिर मम्मा की ओर देखते हैं और कहते हैं "मम्मा नीचे गिर गया था तो मैंने पापा को दे दिया।"
पापा मम्मा एक दूसरे की ओर देख रहे हैं। मम्मा कहती है "बेटा ऐसा नहीं करते किसी को..." और भाईसाहब बीच में बात काट कर कहते हैं "मैंने जानबूझ कर दिया... जानबूझकर..." और अपनी प्यारी सी हंसी में हंसने लगते हैं।
पापा ने वैसे तो मम्मा की कभी बात नहीं सुनी लेकिन उस दिन से 5-सेकंड-रूल से तौबा कर लिया है।

Thursday, February 15, 2024

शौर्य गाथा 108.

 दो महीने बाद भाईसाहब तीन साल के हो जाएंगे... और मुझे अभी से वह दिन याद आ रहा है 23 मार्च 2021. कितना इमोशनल दिन था मेरे लिए... हाथ में लेते हुए इस नन्हीं-सी जान को टप-टप आंसू गिरे थे. इन लगभग तीन वर्षों में कितनी बदल गई है जिंदगी. बहुत से एहसास हैं जो नए-नए मेरे अंदर जन्मे हैं... बहुत सी बातें हैं जो मैंने इस बच्चे से सीखी है... बहुत सा प्रेम है जो महसूस किया है... और भाईसाहब? लगभग तीन साल के भाईसाहब कुछ ज्यादा जिद्दी हो गए हैं... चूजी हो गए हैं... और बहुत सारा प्यार करने लगे हैं. मसलन ऑफिस से आते हैं पुच्ची पर पुच्ची देते हैं फिर जोर से पापा को भींच लेते हैं.

पूरे घर को कैनवास बना के रखा है. बड़ी-बड़ी ड्राइंग करते हैं. कभी-कभी तो बात भी नहीं मानते हैं. बातें अधिक क्यूट हो गई हैं और आवाज तोतली है पर निखलने लगी है.
पापा और भाईसाहब अच्छे दोस्त हो गए हैं. पापा कभी जिद मानते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब गुस्सा करते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब और पापा क्रिकेट खेलते हैं. कभी वह बॉलिंग करते हैं... कभी पापा बॉलिंग करते हैं. वैसे भाईसाहब अधिकतर 'तोहली अंकल' ही बनते हैं.
पापा और भाईसाहब बॉक्सिंग करते हैं. भाईसाहब के प्रहारों से बेचारे पापा गिरते रहते हैं.
पापा स्कूल छोड़ने जाते हैं भाई साहब लौट कर बोलते हैं "पापा त्यों अकेला छोड़ दिया था?"
पापा: "जिससे आप वहां फ्रेंड्स के साथ खेल पाओ."
...और भाईसाहब दौड़कर पास आकर गले लगते हुए बोलते हैं "मुझे तो आपते साथ थेलना है."
पापा इतना सारा प्यार पाकर उन्हें जोर से गले लगा लेते हैं.
--
तीन साल... कल की ही बात लगते हैं... सबसे सुखद साल हैं... जिनका मुझे हर पल याद है.
दो महीने बाद भाईसाहब तीन साल के हो जाएंगे... और मुझे अभी से वह दिन याद आ रहा है 23 मार्च 2021. कितना इमोशनल दिन था मेरे लिए... हाथ में लेते हुए इस नन्हीं-सी जान को टप-टप आंसू गिरे थे. इन लगभग तीन वर्षों में कितनी बदल गई है जिंदगी. बहुत से एहसास हैं जो नए-नए मेरे अंदर जन्मे हैं... बहुत सी बातें हैं जो मैंने इस बच्चे से सीखी है... बहुत सा प्रेम है जो महसूस किया है... और भाईसाहब? लगभग तीन साल के भाईसाहब कुछ ज्यादा जिद्दी हो गए हैं... चूजी हो गए हैं... और बहुत सारा प्यार करने लगे हैं. मसलन ऑफिस से आते हैं पुच्ची पर पुच्ची देते हैं फिर जोर से पापा को भींच लेते हैं.
पूरे घर को कैनवास बना के रखा है. बड़ी-बड़ी ड्राइंग करते हैं. कभी-कभी तो बात भी नहीं मानते हैं. बातें अधिक क्यूट हो गई हैं और आवाज तोतली है पर निखलने लगी है.
पापा और भाईसाहब अच्छे दोस्त हो गए हैं. पापा कभी जिद मानते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब गुस्सा करते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब और पापा क्रिकेट खेलते हैं. कभी वह बॉलिंग करते हैं... कभी पापा बॉलिंग करते हैं. वैसे भाईसाहब अधिकतर 'तोहली अंकल' ही बनते हैं.
पापा और भाईसाहब बॉक्सिंग करते हैं. भाईसाहब के प्रहारों से बेचारे पापा गिरते रहते हैं.
पापा स्कूल छोड़ने जाते हैं भाई साहब लौट कर बोलते हैं "पापा त्यों अकेला छोड़ दिया था?"
पापा: "जिससे आप वहां फ्रेंड्स के साथ खेल पाओ."
...और भाईसाहब दौड़कर पास आकर गले लगते हुए बोलते हैं "मुझे तो आपते साथ थेलना है."
पापा इतना सारा प्यार पाकर उन्हें जोर से गले लगा लेते हैं.
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तीन साल... कल की ही बात लगते हैं... सबसे सुखद साल हैं... जिनका मुझे हर पल याद है.