Wednesday, November 29, 2023

Papa's Letters to Shaurya #EighthLetter


कभी-कभी ऑफिस से आकर तुमसे मिलता हूं तो अंदर से गिल्ट (Guilt) महसूस होती है। अपने सपने के लिए सिर्फ व्यक्ति sacrifice नहीं करता, उनके बच्चे भी करते हैं। वर्किंग पेरेंट्स का गिल्ट में होना कोई नया नहीं है, किंतु मेरे लिए पहला अनुभव है। मेरे फ्रेंड्स बोलते हैं बच्चों को भी आदत हो जाती है और दोपहर में सोने के बाद जागकर तुम अपनी आया का नाम लेते हो तो ऐसा सही भी लगने लगता है। मम्मा या मेरे ऑफिस से लौटकर आने के बाद जिस तरह तुम चहक जाते हो, देखते ही बनता है। तुम्हारी नानी भी यही बोलती हैं कि मम्मा पापा के आने के बाद जैसे शौर्य को दुनिया मिल जाती है।
किंतु तुम्हारा जो दिन भर का इंतजार है वह मेरे लिए तकलीफदेय है। इसलिए भी कि बोर्डिंग में रहते मैंने भी रविवार के इंतजार किए हैं। तुम्हारे दादा-दादी ने भी बिना नागा किए हर रविवार आने की चेष्टाएं की हैं। मैं उनका दर्द, उनका रविवार का इंतजार अब समझ सकता हूं।
बच्चों के साथ पैरेंट्स भी जन्म लेते हैं अब मैं यह समझ सकता हूं। तुम्हारी मम्मा और मेरी फ्यूचर और करियर को लेकर अपने से जो अपेक्षाएं थीं, वह भी कम हुई है। हमारी जिंदगी का केंद्र बिंदु तुम हो। सब कुछ तुम्हारे आसपास ही घूमता है और जब तुम्हें तकलीफ होती है तो हम भी तकलीफ में होते हैं। गिल्ट से भर जाते हैं।
मुझे एक शहर हमेशा जिंदा सा लगता है। कई विचार, कई सड़कें, कहीं लाइटें, कई लोग सबकुछ एक साथ से चलते, आगे बढ़ते, समय में ढलते लगते हैं। जीवंतता का वो शहर जैसे मेरे अंदर समा गया है। जब से तुम जिंदगी में आए हो। कई फिकरें, कई सपने, ढेर सारा प्रेम, उम्मीद, तुम्हारे करतब सब एक साथ आंखों और जेहन में चलते हैं। उसे तुम्हारे आने के बाद समग्र सा होने लगा हूं।
मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं शायद कभी कह नहीं पाऊंगा। कोई पेरेंट्स अपनी संतान को कितना चाहते हैं वे कभी नहीं कह पाते हैं। लेकिन इस उम्मीद में कि एक दिन तुम पढ़ोगे तो समझोगे, इसलिए लिख रहा हूं। साथ ही इस उम्मीद में कि पढ़ने वाले पाठक भी समझ पाएं कि उनके पैरेंट्स उन्हें कितना प्यार करते हैं, लिख रहा हूं।