क्यूंकि पत्थर भी आवाज़ करते हैं एक दिन
क्यूंकि आदमी भी सहते सहते चुक जाता है
क्यूंकि उम्मीद आँखों से निकल बाजुओं तक पहुँच जाती है
क्यूंकि लड़ने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं
क्यूंकि मरना-मारना आखिरी उपाय रह जाता है
इसलिए आदमी कर लेता है आत्महत्या या कर देता है हत्या
आत्महत्यायें हत्या के पहले की आहट बस होती हैं
आहट कि लोग सहते सहते चुक चुके हैं
आहट कि लोग पत्थर उठाने के लिए झुके हैं
आहट कि अब तुम्हारा सिर बचाने का वक़्त आ गया है.