Wednesday, June 9, 2021

जंगल की कहानियां : जादव मोलई पेईंग

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माजुली द्वीप के नदी द्वीप है. देश का सबसे बड़ा. जो ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में स्थित है. ब्रह्मपुत्र की बाढ़ हर साल इस पर कहर बरपाती है. 20वीं सदी की शुरुआत में यह 880 वर्ग किलोमीटर बड़ा हुआ करता था, 2014 में सिमट कर मात्र 352 वर्ग किलोमीटर का ही रहा गया है. बात 1979 की है, यहां के नदी के रेतीले किनारे (Sandbars) पर वृक्षारोपण का प्रोजेक्ट वन विभाग के द्वारा शुरू किया गया. कारण- बाढ़ के प्रभाव को कम करना. एक शख्स इस प्रोजेक्ट में मजदूर के रूप में काम कर रहा था. 1983 में, पांच साल बाद 200 हेक्टेयर वृक्षारोपण का काम पूरा हो गया. मजदूर वापिस जा चुके थे, रोपित पौधे भी काफी उम्र के थे, लिहाज वन विभाग ने भी बहुताधिक सुरक्षा की जरूरत नहीं समझी. परन्तु यह शख्स वहां रुक गया. उनने 1983 से 2013 तक लगातार 30 वर्ष काम कर 550 हेक्टेयर का एक विशाल जंगल खड़ा कर दिया. 550 हेक्टेयर अकेले ही!
इस शख्स ने सारी उम्र दे दी इतना बढ़िया, उच्च गुणवत्ता का जंगल खड़ा करने में. जिसमें बाघ, हाथी और गैंडे भी विचरण कर रहे हैं!
उस शख्स का नाम था जादव मोलई पेईंग (Jadav Molai Payeng). आप में से अधिकतर ने उनकी कहानी पढ़ी होगी या उनका नाम सुना होगा. फिर भी मैं फिर से बताना चाहता था. बताना चाहता था कि जंगल ऐसे ही निर्मित नहीं हो जाते, उच्च गुणवत्त्ता वन तो बिल्कुल भी नहीं. एक जुनून, सारी उम्र और निःस्वार्थ भाव लगता है.
जब भी बक्सवाहा या कहीं और के जंगल के उजड़ने की बात होती है मेरे आंखों के सामने जादव पेईंग का चेहरा घूम जाता है. लगता है जैसे जादव पेईंग की निःस्वार्थ सेवा, लगन, मेहनत, कोशिश और उम्र उजड़ने जा रही हो.
सबकुछ इतना आसान नहीं होता दोस्त. नए जंगल खड़े करना तो बिल्कुल भी नहीं.
[ तस्वीर: बक्सवाहा के जंगल की, जादव पेइंग 2015 में पद्मश्री पुरस्कार लेते हुए. ]