Thursday, October 2, 2014

हम हैं या हम नहीं




हम हैं या हम नहीं
जहाँ पैर पड़े धुंए उठे
धुंआ रास्ता है,
मंज़िल, मंज़िल कहता जिसको 
वो मंज़िल लापता है.
मंज़िल क्या मंज़िल है?
पाने खून बहे वो क्या मंज़िल 
जो खुद खून हों तो क्या मंज़िल
हम हैं पर हम नहीं
तुम हो पर तुम नहीं
मंज़िल वो मंज़िल तो नहीं

तुम हो या तुम नहीं,
हम हैं या हम नहीं,
ऐसा कुछ हमें कबूल नहीं.
जहां तुम,
जहां हम हैं,
सुकूं है,
कल है,
मंज़िल वही.
बस मुझे कबूल यही.