Sunday, January 31, 2010

विदर्भ के किसान का फोटो!


बेटियां भेंट करते,
विदर्भ के किसान का फोटो!
देश का सच कहने काफी है.
बीस रूपये सैकड़ा से,
लिया गया ब्याज.
चुकाते-चुकाते मर गये आप!
खेती भी बेंची, घर भी बेंच डाला,
साहूकार ने सबकुछ पचा डाला.
अब बचीं जवान बेटियां,
वो भी भेंट करो,
क़र्ज़ चुक जायेगा!
हवश से मिटता क़र्ज़,
देश करता तरक्की!
विकास की बात कहाँ तक सच्ची?

फोटो

पत्थर फोडती औरतों का
फोटो कितना दयनीय है.
दर्द से झुकती कमर,
बदन पसीने से तर,
हाथों में पड़ते फफोले,
पत्थरों पे नहीं,
सीधे आत्मा पर पड़ते हथोड़े!
क्या यह हमें ललकार नहीं रहा?


खेत पर,
पत्थरों के बीच लेटे
दुध्मुहें बच्चे का फोटो.
कितनी कराह है इसमें!
खेत जोतते माँ-बाप,
लत्तों से ढंका,
भूखा-दुधमुंहा,
तीव्र किरणों से,
अपने को समेटता है.
क्या फायदा,
सर ढंकने झोपड़ी कहाँ है,
बनाने पैसे कहाँ है!


बेटियां भेंट करते,
विदर्भ के किसान का फोटो!
देश का सच कहने काफी है.
बीस रूपये सैकड़ा से,
लिया गया ब्याज.
चुकाते-चुकाते मर गये आप!
खेती भी बेंची, घर भी बेंच डाला,
साहूकार ने सबकुछ पचा डाला.
अब बचीं जवान बेटियां,
वो भी भेंट करो,
क़र्ज़ चुक जायेगा!
हवश से मिटता क़र्ज़,
देश करता तरक्की!
विकास की बात कहाँ तक सच्ची?


ये फोटो कितने अजीब हैं,
संसद का फोटो कितना मोटा,
पेपर के मुख्य पृष्ट पर आता है.
दर्दील देश का असली सच,
यूँ ही गम हो जाता है.