भाईसाहब बहुत सारा बोलते हैं, बहुत मीठा बोलते हैं. तोतली सी आवाज़ साफ़ होने लगी है, और भी प्यारी हो गई है. बहुत सी ख्वाहिशें हैं, बहुत सी डिमांड्स हैं. बहुत से लफ्ज़ गले में ही अटक जाते हैं, बहुत सी शिकायतें ज़ुबां पर आ जाती हैं तो सबकी हंसी छूट जाती है. मसलन पापा की शिकायत मम्मा से 'मम्मा पापा को डांट दो न.' मम्मा की शिकायत पापा से 'मम्मा टीवी नहीं चला रही, पापा मम्मा को डांट दो न.' करते रहे हैं.
हद तो अब हुई जब मम्मा पास नहीं हैं और ये पापा पर गुस्सा हो गए हैं. पापा की गोदी में चढ़कर पापा से कहते हैं- 'पापा, पापा को डांट दो न.' ...और पापा खुद को डांटने लगते हैं.- 'पापा, ऐसा नहीं करते.'
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शाम में किसी बात पर यशी को उसके दादू (भाईसाहब के नानाजी) ने डांट दिया है. वो अनमनी होकर एक जगह बैठ गई है.
भाईसाहब देखते हैं, दौड़ के नानाजी के पास जाते हैं, हाथ मटकाकर कहते हैं- 'नाना ऐसा नहीं करते... नहीं करते.' और लौटकर दौड़ते हुए यशी के पास आते हैं, कहते हैं- 'शशि दीदी, मैंने नाना को डांट दिया... मत रो.'
सबको इनकी प्यारी सी हरकत देख हंसी छूट जाती है.
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