Tuesday, October 20, 2015

किसान


तुम स्लीपर बोगी में
बीच की बर्थ हो
न ऊपर के हो, न नीचे के.
न सरकार तुम्हारे साथ, ना भगवान.


तुम

तुम-1
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तुम रात की ख़ब्त हो
दिन का सबेरा
मोहब्बत हो मेरी
या दिमाग का दही.

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तुम-2
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मैं अँधेरे में पैदल चल सकता हूँ
आँख बंद कर
...रास्ता गर तुम तक जाता हो.




रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

स्वामी विवेकानंद     :  मैं समय नहीं निकाल पाता. जीवन आप-धापी से भर गया है.

रामकृष्ण परमहंस   :  गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं. लेकिन उत्पादकता आजाद करती है.

स्वामी विवेकानंद     :  आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?    
      
रामकृष्ण परमहंस   :  जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो. यह इसे जटिल बना देता है. जीवन को सिर्फ जिओ.

स्वामी विवेकानंद     :  फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं?    
    
रामकृष्ण परमहंस   :  परेशान होना तुम्हारी आदत बन गयी है. इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते.

स्वामी विवेकानंद     :  अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस   :  हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है. सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है. अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं. इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता हैबेकार नहीं होता.

स्वामी विवेकानंद     :  आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हां. हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है. पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है.

स्वामी विवेकानंद     :  समस्याओं से घिरे रहने के कारणहम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं...

रामकृष्ण परमहंस   :  अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो. अपने भीतर झांको. आखें दृष्टि देती हैं. हृदय राह दिखाता है.

स्वामी विवेकानंद     :  क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?

रामकृष्ण परमहंस   :  सफलता वह पैमाना है जो दूसरे लोग तय करते हैं. संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो.

स्वामी विवेकानंद     :  कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाएबजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है. जो कुछ पाया हैहमेशा उसे गिनोजो हासिल न हो सका उसे नहीं.

स्वामी विवेकानंद     :  लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?

रामकृष्ण परमहंस   :  जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, "मैं ही क्यों?" जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, "मैं ही क्यों?"

स्वामी विवेकानंद     :  मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूँ?

रामकृष्ण परमहंस   :  बिना किसी अफ़सोस के अपने अतीत का सामना करो. पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो. निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो.

स्वामी विवेकानंद     :  एक आखिरी सवाल. कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं.

रामकृष्ण परमहंस   :  कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती. अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो. जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है. यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है. मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है.
(अनुवाद: आशुतोष उपाध्याय)

Thursday, October 15, 2015

बेरोज़गार कवितायेँ


कितनी बैचेनी,
साल भर की
मेहनत के बाद,
एग्जाम.

खोजा गया रोल नंबर.
लिस्ट में कहीं भी नहीं,
ऊपर से निचले सिरे तक.
दो बार फिर और दो बार चेक किया गया,
नहीं मिला.

तुम्हारा बॉयफ्रेंड
इस साल भी बेरोज़गार रह गया.
तुम्हारी शादी अब किससे होगी शोना?

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तुम्हारी आँखों में ऐसा क्या है जो मैं देखूं?
वही काली की काली हैं,
वही निचुड़े से ख्वाब हैं,
वही बेरोज़गारी है,
वही बेचारगी है.

लड़की ने ऑरेंज जूस के पैसे टेबल पे पटके
और चली गई.
लड़का फटी जेब और बेचारी आँखों से
जाते देख रहा था.

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तुम्हारा पिता
मेरे पिता के पिता का भी पिता था.
तो उनके बेटी के बेटे का बेटा
तुम्हारा क्या हुआ?

लड़का उलझा रहा ऐसे ही
सवालों में साल भर.
लड़की को डोली में उठा
ले गया कोई हमसफ़र.

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मेरे घर में
रहता हूँ मैं,
चंद किताबें
एक देश और एक विश्व का नक्शा
कुछ धूल
और चार कॉकरोच.

कभी कभी चार बातें भी रहती हैं
दीवारों में गूंजती.
जो गर्लफ्रेंड सुना के जाती.
दो पैसे भी रहते हैं,
जो गर्लफ्रेंड दे के जाती है.


Monday, October 12, 2015

नेचर फ्रेंडली पोएम्स


कवितायेँ लिखना एक बकवास काम है
प्रेमिकाओं पे लिखना उससे भी बकवास.
प्रेमिकाएं जाने के लिए पैदा हुई हैं,
और तुम लिखी कविताओं के पन्ने फाड़ने.
बेवकूफ!! पेपर बनाने को पेड़ खर्च होते हैं,
इको-सिस्टम की माँ-बहन एक मत करो,
रुको! प्रेमिकाओं पे कवितायेँ मत लिखो.

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मैंने एटीएम से पैसे निकाले
लेकिन पर्ची न निकाली,
कागज़ का एक टुकड़ा बचाया,
कोई पेड़ थोड़ा कम काटा गया होगा.
(कागज़ पेड़ से बनता है.)
इस इको-फ्रेंडली काम के बाद,
पैसों की सिगरेट खरीदी
बीच सड़क फूंकी
चे-ग्वेरा वाली टी-शर्ट से हाथ पोंछे.
आँखों में क्रांति की चमक आ गई.

 तुमने भी साहित्य अकादमी लौटाया क्या?

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तुम्हारे कार्बन फुट-प्रिंट ,
करते तुम कुछ नहीं,
बोझ हो,
मर ही जाओ

रुको! रुको!
मरने पे ज्यादा कार्बन
उत्सर्जन करोगे.
चलो! बाद में मरना.

वैसे भी धरती आदमी के बोझ तले
कहाँ ज्यादा दिन ज़िंदा रहने वाली है.

Sunday, October 11, 2015

पांच कवितायें


मोबाइल फ़ोन पे तुम्हारी मासूम शक्ल 
बन जाती है.
और जब तुम बोलते हो
तो आँखों में तुम्हारा मासूम अक्स उभर आता है.

तुमसे बात करना जैसे
पागलों को मनाना है.

तुम पैदा नहीं हुई होगी,
तुम्हें तुम्हारे माता-पिता ने
बेवकूफ़लड़की.कॉम से डाउनलोड किया होगा.

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तुम्हारा लगाना किसी को गले,
तुम्हारे अंदर बवाल कर देता है,
तुम्हारी आँखें तुम्हें धिक्कारने लगती हैं.

बीसवीं सदी में जब
देविका रानी ने भी नहीं दिया होगा
बॉलीवुड का पहला चुम्बन.
उसके पहले शायद बूढी हो चुकी थी
तू, पच्चीस बरस की वालिग लड़की!

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वैसे कुछ खास नहीं लगता तुम्हें पढ़ना,
वही सब है
जो कहा गया पहले,
बेवकूफ पोएट्स ने लिखा पहले.

खास लगता है
तुम्हें पढ़ के सोचना
कि किस गधे को अपने दिमाग में रख
इमेजिन किया होगा सबकुछ.
उफ़! तुम्हारी फैंटेसीज़.

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तुमसे बात न कर के
बस उतना सा ही दुःखी हूँ
जितना सुबह की कॉफी न मिलने पे होता हूँ.

सुबह से शाम पढ़ने में मन नहीं लगता 
और अजीब सी बैचेनी होती है.
कोशिशें होती हैं कि 
किसी तरह मिल जाये बस, एक कॉफ़ी.

मरिजुआना से ज्यादा नशा होता है
कैफीन का.
विज्ञान की कोई किताब उठा के पढ़ लो.

तुम कैफीन हो शोना.

Saturday, October 10, 2015

बेरोज़गार की किताब से


रोटियों के पैसे किसने चुकाए तुम्हारे
कॉफ़ी की ये आदत
दिन में दो दफे चाहिए तुम्हें.
पांच रूपये की पड़ती है घर बनाओ तो,
पचास की बाहर.
शुक्र है सिगरेट नहीं पीते.

तुम्हारे कपडे हैं न, ठाठ वाले,
अठरह सौ की वो शर्ट
अच्छे घर में जन्मने का फल है.
साठ प्रतिशत आबादी नहीं तो
रोटी जुगाड़ रही है,
सुबह से शाम.


तुम्हें अपने बाप से शिकायतें हैं,
जिसकी नौकरी से
बिल भरे जाते हैं तुम्हारे.
टाटा तो वो भी पैदा नहीं हुआ था.
उसने मत्था फोड़ा, हाथ-पांव-दिमाग खपाये
तब तुम पढ़ पाये.

रोटियों की दूकान पे उधारी नहीं चलती,
दोस्त बस भरम हैं,
फ़ोन कर लें एक दफ़े महीने में,
बस बहुत है.

देह वाली भी कुछ कमाती तो है.

सड़क पे पड़े पत्थर तुम,
हटो!!!

भोंदू जी की सर्दियाँ / वीरेन डंगवाल

आ गई हरी सब्जियों की बहार 
पराठे मूली के, मिर्च, नीबू का अचार 

मुलायम आवाज में गाने लगे मुंह-अंधेरे 
कउए सुबह का राग शीतल कठोर 
धूल और ओस से लथपथ बेर के बूढ़े पेड़ में 
पक रहे चुपके से विचित्र सुगन्‍धवाले फल 
फेरे लगाने लगी गिलहरी चोर 

बहुत दिनों बाद कटा कोहरा खिला घाम 
कलियुग में ऐसे ही आते हैं सियाराम 

नया सूट पहन बाबू साहब ने 
नई घरवाली को दिखलाया बांका ठाठ 
अचार से परांठे खाये सर पर हेल्‍मेट पहना 
फिर दहेज की मोटर साइकिल पर इतराते 
ठिठुरते हुए दफ्तर को चले 

भोंदू की तरह 

आएँगे, उजले दिन ज़रूर आएँगे / वीरेन डंगवाल

आतंक सरीखी बिछी हुई हर ओर बर्फ़
है हवा कठिन, हड्डी-हड्डी को ठिठुराती
आकाश उगलता अन्धकार फिर एक बार
संशय विदीर्ण आत्मा राम की अकुलाती

होगा वह समर, अभी होगा कुछ और बार
तब कहीं मेघ ये छिन्न -भिन्न हो पाएँगे

तहखानों से निकले मोटे-मोटे चूहे
जो लाशों की बदबू फैलाते घूम रहे
हैं कुतर रहे पुरखों की सारी तस्वीरें
चीं-चीं, चिक-चिक की धूम मचाते घूम रहे

पर डरो नहीं, चूहे आखिर चूहे ही हैं
जीवन की महिमा नष्ट नहीं कर पाएँगे

यह रक्तपात यह मारकाट जो मची हुई
लोगों के दिल भरमा देने का ज़रिया है
जो अड़ा हुआ है हमें डराता रस्ते पर
लपटें लेता घनघोर आग का दरिया है

सूखे चेहरे बच्चों के उनकी तरल हँसी
हम याद रखेंगे, पार उसे कर जाएँगे

मैं नहीं तसल्ली झूठ-मूठ की देता हूँ
हर सपने के पीछे सच्चाई होती है
हर दौर कभी तो ख़त्म हुआ ही करता है
हर कठिनाई कुछ राह दिखा ही देती है

आए हैं जब चलकर इतने लाख बरस
इसके आगे भी चलते ही जाएँगे

आएँगे उजले दिन ज़रूर आएँगे

Problems faced by women SHGs

SHGs have achieved remarkable success in empowering rural masses, especially women, socially and economically. In fact, the government has been encouraging the micro-finance based model of poverty eradication. E.g. National Rural Livelihood Mission. However, the prevailing model of SHG micro-finance in general and women SHGs, in particular continue to face a myriad of problems.
Problems faced by women SHGs:
(A) Women have little financial independence at home. Therefore, women SHGs often fail to augment their collateral corpus adequately. This makes banks reluctant to finance projects lead by such SHGs.
(B) Given the patriarchal notions of the Indian society, women SHGs are perceived with contempt and suspicion. 
(C) Low literacy levels in rural areas, especially so among women, proves to be a major barrier. Makes it difficult for them to not only gather information but also market their product effectively.
(D) Above-mentioned reasons force many women SHGs to middlemen, leading to their exploitation.
(E) Enormous workload on women, especially on account of their familial obligations, results in poor productivity of women SHGs.
Coming to the SHG micro-finance model for poverty alleviation, following concerns remains:
(A) Many a times, SHGs are dominated by the elite among the rural poor. This could lead to alienation of the real beneficiaries.
(B) SHGs don't often follow need-based loan disbursal for the money from the SHG account is usually equally distributed among all members => differential credit needs of the group ignored
(C) Model hardly focuses on investment potential and improvement of skill levels of the borrowers - making credit available is not a panacea to rural problems. 
(D) SHG model has not been used by members to push themselves up the economic ladder. Focus of this model remains on financial inclusion and fails to tap the entrepreneurial spirit of borrowers.
No doubt that the model has successfully inculcated financial training and discipline among rural poor, more needs to be done to make this model a true harbinger of prosperity at the grass-roots level.

Thursday, October 8, 2015

प्रेम

एक रोज पत्थर पे
परीकथाएं रख में
छन्न से तोड़ दूंगा सारी.
बारूद रख दूंगा प्रेम की कविताओं में
और जबरदस्ती सोहनी-महिवाल, लैला-मजनूँ के ब्याह करा दूंगा.

फिर देखता हूँ
कैसे अमर होती है कोई प्रेम-कथा,
कैसे बचता है प्रेम.

मुझे 'हैप्पिली लिविंग आफ्टर...'
का सच भी कोई बताओ.
जिनमें सीताएं अग्नि परीक्षाएं देती हैं, राम शासक होते हैं,
जिनमें कृष्णा को रुक्मणी सौलह हज़ार औरतों के संग बांटती हैं.
जिनमें एक बड़ी सी गाड़ी का औरत छोटा पहिया होती है,
जिससे गाड़ी तो चलती है लेकिन औरत की मर्जी जाने बिना ही.

प्रेम एक ढकोलसे से ज्यादा कुछ भी नहीं.
प्रेम बिछोह से सास्वत होता है,
प्रेम साथ होता है तो
वहां प्रेम के अलावा सबकुछ होता है.

Nobel Prize | Medicine

Awarded Nobel Prize winners have contributed revolutionarily in developing drugs to fight malaria and other tropical diseases that are river blindness and Lymphatic filariasis. With the rising cases of death due to these diseases across the world these drugs is acting positively to contain them.
Significance of these discoveries:
1. Malaria:
it is a mosquito-borne disease that erupts mainly in developing countries which has affected specifically the poor. It is being estimated that malaria still kills around 500,000 people a year, mostly in Africa, despite efforts to control it. Newly created drug will be trying to provide early response and will also immunise person from further threats.
2. River blindness:
with the redesigned extraction process of drug it has huge potential to reduce cases of river blindness.
3. Lymphatic filariasis:
which lead to swelling of the limbs and genitals, called elephantiasis, and it’s primarily a threat in Africa and Asia. Since the newly developed drug is cheaper it will primarily reduce cases where huge cost on treatment is impossible for the people.
Hence these discoveries have provided powerful new means to combat these debilitating diseases that affect hundreds of millions of people annually.