Saturday, September 6, 2014

मैं निर्णय हूँ अपना, समाज का नहीं




अब मैं निर्णय हूँ अपना, समाज का नहीं,
मैं अपना कल था, कल हूँ, आज भी.
कांटे, पत्थर, प्रलय, प्रकोप,
ज्वालायें, जेवर सब, ताज भी.
मैं जिम्मा हूँ सबका, सबकुछ मेरे जिम्मे,
मैं राजन अपना, स्वयं राज भी!

पथ-प्रवर्तित उर का काव्य यही-
कर्म तू , कर्ता हृदय का भाव्य भी
रस कर्म का निकले जो भी,
अंगीकृत कर श्राप भी, श्राद्ध भी!

मैं निर्णय हूँ अपना, समाज का नहीं,
मैं अपना कल था, कल हूँ, आज भी.