Thursday, June 10, 2021

जंगल की कहानियां : भारत में सागौन प्लांटेशन के जनक मनीराम गोंड

 #Jungle

भारत में सागौन प्लांटेशन के जनक : मनीराम गोंड (1891)
लगभग 132 साल पहले छत्तीसगढ़ के रायपुर वनमंडल अंतर्गत एक अंग्रेज वन अधिकारी की पोस्टिंग पिथौरा में हुई। उसने कुम्हारीमुड़ा के मनीराम गोंड को बीटगार्ड की नौकरी पर रख लिया। मनीराम खाना बनाने में कुशल थे सो इनके हाथों बने भोजन का स्वाद साहब की जुबान पर चढ़ गया। कुछ महीनों बाद अंग्रेज अधिकारी इंग्लैंड गया तो मनीराम को भी अपने साथ ले गया। वहां पर मनीराम ने साहब की नर्सरी में पौधों के बीज उगाने और पौधा बनाने की 'रुट शूट विधि' सीख ली। जब वे वापस भारत आये तो दो साल बाद उन अंग्रेज वन अधिकारी का ट्रांसफर हो गया।
1891 का साल था जब गिधपुरी जंगल जो देवपुर फारेस्ट रेंज में आता है और बार नवापारा वन्यजीव अभ्यारण्य से लगा हुआ है, वहां जंगल का बड़ा हिस्सा कटाई के कारण उजाड़ पड़ा था। मनीराम ने अपनी पत्नी के साथ वहां पौधे लगाने का निश्चय किया। बताया जाता है कि संजोगवश बर्मा से लौटे एक व्यापारी से उनकी मुलाकात हुई और उसने मनीराम को सागौन के पौधे रोपने का सुझाव दिया और इसके लिए सागौन के बीज उपलब्ध करवाए। यहां पर मनीराम ने इंग्लैंड में सीखा हुआ 'रुट शूट' पौधारोपण विधि का उपयोग किया और जंगल के 23 एकड़ क्षेत्र में सागौन के पौधे लगा डाले! इस समय जब पौधारोपण की कोई स्पष्ट नीति नहीं बनी थी, तब मनीराम ने इस उच्च तकनीक 'रुट शूट प्लांट पद्धति' से सागौन लगा दिए थे। कहा जाता है कि यह सागौन प्लांटेशन भारत ही नहीं बल्कि एशिया का पहला सागौन प्लांटेशन था।
पर इस वनपुत्र को इस अच्छाई का फल दुःख के रूप में मिलना था। बाद में आये अंग्रेज अफसर ने इस सागौन पौधारोपण को लेकर विभागीय अनुमति के दस्तावेज खोजे तो वह नहीं मिला जबकि मनीराम का पौधारोपण भावनावश था। विभाग ने इस काम को गैरकानूनी माना और मनीराम को बर्खास्त कर दिया! मनीराम इससे आहत होकर पागलों की तरह भटकने लगे और बाद में उनकी मौत हो गई! स्थानीय दैवीय विश्वासों के अनुसार मरने के बाद उनकी आत्मा जंगल और गांव में भटकती थी इसलिए बैगाओं ने उनकी आत्मा को मनीराम प्लांटेशन के एक पेड़ में पत्थर बनाकर स्थापित कर दिया और विभिन्न त्योहारों में उनकी पूजा की जाने लगी।
वक्त बीता और बाद में वन विभाग द्वारा इस प्लांटेशन का नामकरण मनीराम जी पर किया गया। आज 23 एकड़ क्षेत्र में सिर्फ एक एकड़ जगह पर ही मनीराम के लगाए सागौन बहुत कम संख्या में बचे हुए हैं। इन पेड़ों की मोटाई पौने तीन मीटर तक है और ये अपने वजन को और कितने दिन सम्भाल सकेंगे, यह कहा नहीं जा सकता। इस प्लांटेशन को लेकर लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। बचे हुए पेड़ों को संरक्षित करने के उपायों के साथ इस प्लांटेशन स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना अच्छा कदम होगा। 1997 में तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने मनीराम के पोते प्रेमसिंह को को 10 एकड़ जमीन और 50 हजार रुपये देने की घोषणा की थी। इसी तरह जून 2018 में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पौधरोपण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करनेवाले को 'मनीराम गोंड स्मृति हरियर मितान' नाम से राज्यस्तरीय सम्मान देने की घोषणा की थी। मनीराम के वंशजों को अभी उस जमीन पर मालिकाना हक मिला है कि नहीं, यह पता नहीं है क्योंकि खबरों के अनुसार 2017 तक मनीराम के पोते प्रेमसिंग जिनकी भी मृत्यु हो चुकी है, उनकी पत्नी हीराबाई को नहीं मिला था।
आज मनीराम नहीं हैं पर पूरे देश में उनकी सागौन रोपणी पद्धति का ही अनुसरण किया जाता है। मनीराम जिनकी कद्र तत्कालीन वन विभाग न कर सका, उसे गांववालों ने वनदेवता बना दिया! यह घटना लोक में किंवदंतियों की स्थापना प्रक्रिया पर प्रकाश डालती है। इस मुद्दे पर और भी कोई जानकारी हो तो टिप्पणी में बता सकते हैं। 'वनदेवता' मनीराम जी को नमन।
- Piyush Kumar
No photo description available.