प्यार करना बहुत ही सहज है, जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना. -पाश
Saturday, January 20, 2024
मां बिन दो दिन | Part 4
Thursday, January 18, 2024
मां बिन दो दिन | Part 3
Wednesday, January 17, 2024
मां बिन दो दिन | Part 2
Monday, January 15, 2024
मां बिन दो दिन | Part 1
Wednesday, January 10, 2024
शौर्य गाथा 101.
चाचू भाईसाहब को पुतरा (मतलब : गुड्डा, Doll) बोलते हैं। भाईसाहब को ये शब्द रट गया है। भाईसाहब जब अच्छे मूड में होते हैं (मतलब पेट भरा हो, नींद पूरी हो) तो पापा के पास आते हैं, पापा के पेट पर चढ़ते हैं और गालों को हाथ में ले खिलाते हैं और कहते हैं "पुतरा ता तल लहे हो? तलो थेलने तले?"
Saturday, January 6, 2024
शौर्य गाथा 100.
भाई साहब को भी नेमप्लेट चाहिए। भाईसाहब की जिद है तो पापा को पूरी करनी पड़ेगी। पापा बनवा देते हैं। अब भाईसाहब दिन रात उसे लगाए घूम रहे हैं। जागते कुछ याद आए न आए, नेमप्लेट याद जरूर रहती है।
Thursday, January 4, 2024
शौर्य गाथा 99.
भाईसाहब दिन-ब-दिन बड़े हो रहे हैं और साथ ही बातूनी भी होते का रहे हैं। उनके मुख से निकले तोतले शब्दों को सुनना आनंददायक है। बोलने की समझ विकसित होते देख आप आश्चर्य से भर उठते हैं!
Sunday, December 24, 2023
तुम्हारे प्रेम की कविताएं
मुस्कुराऊं तो मुस्कुराती हो
बेवजह गाल सहलाती हो
पीछे से आ लिपट जाती हो
बाल बिखराती हो, बारिश कराती हो
नींद में बुदबुदाती हो
कितने वादे करती हो,
कितने याद दिलाती हो
जब भी खिलखिलाती हो
कितनी भोली नज़र आती हो
चूम लूं , लजाती हो।
तुम बहुत भाती हो।
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सूख के तुम्हारे होंठों से झर जायेगी कविता
कभी उंगलियों की पोरों के उलझ जायेगी कविता
तुम्हारे माथे को चूम इक कविता उगा दूंगा
तुम्हारी करवट पर शांत सो जायेगी कविता।
तुम्हारे होने से पूर्व मैं एक कविता था
तुम्हारे आने के बाद तुम एक कविता हो।
उलझी गलियों में जब उलझोगी
मेरी कविता सीने से लगाना
यूं थम मेरी उंगली चले आना!
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कुछ भी प्रेम हो सकता है,
रिसते हाथ
सिसकती सांस
सरकते होंठ
भीगी आंख.
प्रेम... बस प्रेम है!
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कविता अधूरी
बैठी रही किसी कवि की याद में।
जैसे तुम्हारी राह तकते
मैं बैठा हूं,
दिल्ली में दिल लिए।
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कनखियों से देखता तुम्हारा लजाना
सादगी से सीने में उतर जाना।
कविता की पहली किताब की तुम प्रेरणा होगी
कविता की आखिरी किताब का नज़राना।
तुम्हारी लटो में उलझ मार जाऊंगा,
एक रोज ऐसी कविता हो जाऊंगा।
प्रेरणा सृष्टि के जन्म की रही होगी,
कनाखियों से देखना तुम्हारा लजाना।
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यह कविता
माफीनामा है
तमाम स्त्रियों से,
जिनसे मैंने पुरुष की
तरह व्यवहार किया।
जबकि मुझे मनुष्य होना चाहिए था।
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तुम्हारे होने से ही है ये दुनिया
तुम्हारे होने से हैं ये घर।
कितना सुखद है
किसी के होने से
खुद के होने का एहसास होना।
शौर्य गाथा 97/98
वर्ल्डकप को इक महीना हो गया है लेकिन भाईसाहब अभी भी क्रिकेट की ही खुमारी में हैं। "पापा मैं तोहली अंकल बनूंगा, आप बॉल फेंको।" पापा बॉल करते हैं।
Friday, December 22, 2023
Papa's Letters to Shaurya #11thLetter