भाई साहब को भी नेमप्लेट चाहिए। भाईसाहब की जिद है तो पापा को पूरी करनी पड़ेगी। पापा बनवा देते हैं। अब भाईसाहब दिन रात उसे लगाए घूम रहे हैं। जागते कुछ याद आए न आए, नेमप्लेट याद जरूर रहती है।
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भाईसाहब जागे है और जागते ही पापा की गोदी चढ़ गए हैं।
पापा को उनके इस एक्ट से स्वर्गानुभूति महसूस होती है।
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