Saturday, January 20, 2024

मां बिन दो दिन | Part 4


भाई साहब एक किताब लेकर आए हैं। मैं देखता हूं दीवान ए ग़ालिब है।
भाईसाहब: "पापा पापा मैं इस पर लिखूंगा।"
पापा: "अरे यह कौन सी किताब है?"
"पापा ये कॉपी है... कॉपी। मैं इस पर लिखूंगा।"
"अच्छा इस कॉपी पर क्या बना है?"
"पापा भगवान बने हैं... भगवान जी।"
मैं मुस्कुराता हूं। सोचता हूं ग़ालिब के चाहने वालों ने तो कम से कम उन्हें ईश्वर की तरह पूजा ही है।
पापा: "अरे आप मेरे हाथ पर लिख दो न। पापा की पेंटिंग कर दो।"
भाईसाहब को ये आईडिया ज्यादा पसंद आया है। वे पापा के हाथ पर अपनी सुप्रसिद्ध मॉडर्न आर्ट बनाने लगे हैं।
भाई साहब ने बनाने बनाते एक हार्ट (Heart) भी बना दिया है। इन्हें आने लगा है बनाना!
"आपने तो हार्ट बना दिया" पापा बोलते हैं। भाईसाहब बेफिक्र हैं। जैसे कोई उम्दा आर्टिस्ट बस अपने काम से काम रखता है, वैसे ही बिना सर उठा कहते हैं "पापा पापा मैं तो हार्ट भी बना लेता हूं।"
पापा मुस्कुरा रहे हैं। वहां ग़ालिब भी मुस्कुरा रहे हैं। शुक्र है उनका चेहरा मॉडर्न आर्ट का कैनवास बनने से बच गया।
लेकिन तभी भाईसाहब तोतली भाषा में बोलते हैं "पापा, पापा मम्मा कहां गई... मुझे मम्मा के हाथ पर भी बनाना है।"
...और बस, पापा भाईसाहब को कहीं और उलझाने में लग गए हैं।

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