Thursday, January 4, 2024

शौर्य गाथा 99.

 भाईसाहब दिन-ब-दिन बड़े हो रहे हैं और साथ ही बातूनी भी होते का रहे हैं। उनके मुख से निकले तोतले शब्दों को सुनना आनंददायक है। बोलने की समझ विकसित होते देख आप आश्चर्य से भर उठते हैं!

एक बार बोलते हैं "मम्मा ऑफिस में (ये अपने स्कूल को ऑफिस कहते हैं, जैसे मम्मा पापा का ऑफिस है वैसे ही इनका भी है।) मेले दोस्त मुझे चॉकलेट देते हैं l"
मम्मा: "लेकिन चॉकलेट खाना तो बुरी बात होती है।"
भाईसाहब तुरंत पलट जाते हैं "मम्मा, अले... चॉकलेट नहीं... बादाम दिया था।"
भाईसाहब में इतनी जल्दी आ रही समझ पर हम बहुत हंसते हैं।
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ऐसे ही भाई साहब की मौसी आई हुई है। उनके साथ उनकी 2 महीने की बेटी भी है। भाईसाहब देखकर बहुत खुश हैं। बोल रहे हैं "मैं खिलाऊंगा, अपने साथ रखूंगा।"
मम्मा: "अरे बेबी तो मेरी है ना।"
भाईसाहब: "अले! मेली भी तो है ना।"
भाईसाहब में किस बात पर 'भी' बोलना है किस बात पर नहीं की भी समझ आ गई है! इतनी समझदारी देखकर हम आश्चर्यचकित हैं।

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