Saturday, May 4, 2024

इक पत्र और प्रेम कविताएं



 मैंने कहा "तुम जहां हो

वहां तुम्हारा होना 

एक क्रांति है।"


"नहीं, मेरा होना ही 

एक क्रांति है।"

लड़की ने प्रत्युत्तर दिया।


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किताबों में उलझा

एक वीरानापन है।


कैसे तुम्हें समझाऊं

तुम्हारा दुनिया में होना ही अपनापन है।


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एक रात तुम लौट आना

शहर से लौटता है कोई गांव जैसे


वैसे शहर से कोई

फिर स्थाई तो नहीं लौटा है गांव

ह्वंगसांग से सारे

यात्री की तरह लौटते हैं गांव


पर एक रात तुम लौट आना

अपने होने की यात्रा पर।


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तुनहरे हाथों में गुदगुदी होती तो होगी

मेरी याद अभी भी वहां सोती तो होगी

दवा नीम सी बिखरी है चेहरे पे तुम्हारे

मेरी याद बुखार में राहत देती तो होगी।


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मैंने नहीं चाहा कि

कभी पीली साड़ी को उतारो तुम

पतझड़ में बसंत होती हो

मेरा मन-तरंग खिल जाता है


तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा

पीला सूट

खुले बाल

तुम्हें भगवान ने पीली साड़ी में ही बनाया होगा।


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जो तुम्हें

पाठ्यक्रम में सिखाया जाएगा


वो तुम्हें कभी

वह नहीं बनाएगा

जो तुम बनना चाहते हो


या कि ईश्वर तुम्हें बनाना चाहता था.



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एक दिन जब ईश्वर

खुद धान रोपेगा


तो खुद न्यूनतम समर्थन मूल्य

बढ़ाने चला आयेगा.


धरती पे बैठे लोगों को तो

धान कैसे उगती है

कभी समझ नहीं आयेगा!


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तुम जीता जागता प्रेमपत्र हो.


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मृत्यु से भी ज्यादा

बदतर होना कुछ देखा है?


क्या ढोया है

वह बोझ


असफलता, 

निःसंतानता,

बेरोजगारी


इससे भी बड़ा बोझ है

अपनी संतान से आंखें न मिला पाना


और उस गलती के लिए

जो तुमने कभी की ही नहीं थी!


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मुझे पूछना था तुमसे

कि किरदार जिनमें तुम 

रम जय करते थे


उन्हें 

जिस्म से बाहर कैसे निकाला करते थे?


मैं तो जिस किरदार में हूं

वर्षों से वही ढो रहा हूं।


(इरफ़ान के लिए)

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