Saturday, November 30, 2019

रावण के जन्म की कहानी



रावण नाम सुनते ही हमारे अंदर एक दैत्याकार , दस सिर  बीस हाथ वाले आदमी का चेहरा उभर आता है. कुछ के सामने शायद रामानंद सागर के रामायण के अरविंद त्रिवेदी जी द्वारा निभाए चरित्र का चेहरा उभर आता हो. लेकिन जो भी है आता चेहरा एक राक्षस का ही सामने है. लेकिन क्या रावण वाकई राक्षस था? इसे जानने के लिए हमें रावण के जन्म की कथा पर जाना होगा.

हुआ यूँ की राक्षस राज सुमाली ने सब दैत्यों को हरा दिया था. वो और उसके भाई माली और माल्यवान मिलकर बहुत ताकतवर थे. उसकी स्वयं की पत्नी केतुमति एक गन्धर्व कन्या थी. सुमाली स्वयं एक बेहद शक्तिशाली राजा था. उसने सारे दैत्यों और देवों को जीत कर अपना राज्य लंका में स्थापित किया था. किन्तु कालांतर में उसका शक्तिशाली भाई माली विष्णु के हाथों मारा गया और बाद में देवों के हाथों हार कर उसे रसताल में शरणागत होना पड़ा. विक्षुप्त सुमाली अब खुद से भी ज्यादा शक्तिशाली, समझदार, ज्ञानी पुरुष को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चाहता था. वह चाहता था कि न सिर्फ देवगण उसके उत्तराधिकारी से डरें बल्कि  वो इतना तपी, हठी, योगी हो कि त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को भी उसके ज्ञान, तप और योग का भय हो.

उसी समय स्वयं ब्रह्मा के पौत्र और महर्षि पुलत्स्य के पुत्र विश्रवा के तप के चर्चे सारे ब्रह्माण्ड में गूंज रहे थे. इनके तप, ऋषिव्रत से प्रसन्न हो महर्षि भारद्वाज ने अपनी कन्या इलाविडा का विवाह इनसे किया था. सुमाली और केतुमति को ये पुरुष युगपुरुष सा प्रतीत हुआ. विश्रवा के बारे में विस्तार से पता किया गया और सुमाली और केतुमति ने अपनी सबसे सुन्दर कन्या कैकसी जो खुद गन्धर्व कन्या कि तरह ही बेहद सुन्दर थी, का विवाह विश्रवा से करने का निश्चय किया. लेकिन परेशानी ये थी कि इतना बड़ा योगी किस तरह कैकसी से विवाह हेतु तैयार हो? इसके लिए कैकसी ने ऋषि आश्रम एक समक्ष अपने सौंदर्य का प्रदर्शन किया, ना-ना प्रकार से रिझाया, स्वयं सुमाली ने इस तरह का प्रेमाच्छिद वातावरण बनाया कि विश्रवा कैकसी के प्रेमपाश में बांध जाएँ. और हुआ भी यही. विश्रवा ऋषि कैकसी के प्रेम में बंधे अपना घर, अपने पुत्र कुबेर और पहली पत्नी इलाविडा को छोड़ कर कैकसी के साथ रहने के लिए आ गए. उन्होंने नया आश्रम बनाया और वहीँ कैकसी के साथ निवासरत हुए.

कालांतर में महर्षि विश्रवा और कैकसी को तीन पुत्र रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और एक कन्या प्राप्त सूर्पनखा प्राप्त हुए.

कहते हैं इन तीनों पुत्रों में से प्रथम पुत्र रावण में अनुवांशिक रूप से अपने पिता और अपनी माता दोनों के कुलों के बराबर गुण आये. दूसरे पुत्र कुम्भकर्ण में माता के कुल के गुण थे. अंतिम पुत्र विभीषण में पूर्णत: पिता के कुल के गुण थे.

रावण में माता के कुल और पिता के कुल दोनों के गुण अनुवांशिक रूप से समाये हुए थे. इसलिए वो पिता के कुल की ओर से जहाँ स्वयं भगवान ब्रह्मा का प्रपोत्र था तो योगी श्रेष्ठ विश्रवा का पुत्र था. मतलब उसमे देवीय अंश, श्रेष्ठ ऋषि के श्रेष्ठ मानवीय अंश एक साथ विद्यमान थे. वहीँ माँ के कुल की तरफ से नानी के गन्धर्व अंश तथा पिता के बलशाली राक्षस कुल के अंश थे. मतलब रावण में बुद्धि, तप-तपस्या-त्याग, योग, ज्ञान जैसे दैवीय गुण एवं संयम, अभय, विवेक, न्याय जैसे मानवीय गुण अनुवांशिक रूप से से ही विद्यमान थे तो साथ में बल, शक्ति, युद्ध निपुणता तथा कपट,  क्रूरता, हिंसा जैसे राक्षसी गुण-अवगुण भी थे तो गांधर्वीय सौंदर्य, संगीत-ज्ञान एवं सांस्कृतिक निपुणता भी जन्म से मौजूद थी. इसलिए रावण सर्वोत्तम योगी व शिव भक्त था, एक बेहतरीन वीणा वादक, एक बेहतरीन योद्धा हुआ. इसलिए वह एक योगी का पुत्र होते हुए भी लंका को जीत पाने में समर्थ हुआ बल्कि वहां का बेहतरीन और जन-मान्य राजा भी साबित हुआ. रावण को चारों वेदों का ज्ञान था और सारे छह: शास्त्र भी ज्ञात थे. कहते हैं उसके दसों सिरों का मतलब भी यही है कि उसे चार वेद और छह शास्त्र ज्ञात थे. जैन धर्म में उसके दस सिरों का मतलब उसको दस दर्शनों का ज्ञान होना बताते हैं.

लेकिन इतना ज्ञान, प्रतापी, शिव-भक्त, आनुवंशिक रूप से श्रेष्ठ रावण के साथ ऐसा क्या हुआ था कि उसको मरने के लिए स्वयं भगवान को अवतार लेना पड़ा?
कारण ये था कि रावण का जन्म एक साजिश के माध्यम से हुआ था. इसलिए उसका लालन-पालन भी नाना-कुल के सानिध्य में हुआ. इसलिए भले ही उसमें अनुवांशिक रूप से राक्षस कुल के बस कुछ अंश थे किन्तु पालन-पोषण और संपर्क में मिले संस्कारों के कारण उसमें राक्षसी प्रवित्तियाँ ज्यादा हावी हुईं और अंतत: अंत का कारण भी बनी.

2 comments:

Anonymous said...

प्रशंसनीय प्रस्तुति

Rajasthani Poetry ( Anjas) said...

keep up the good work

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