Thursday, November 23, 2023

शौर्य गाथा 88.


दिन निकल गया है और सारे घर में भाईसाहब के खिलौने बिखरे पड़े हैं, कुछ बर्तन हैं यहां-वहां, भाईसाहब के बिखेरे... दस बार खाने को बनवाया है, दस बार जिद की तब तीन बार खाया है। दिन भर में मैं भी झल्लाकर गुस्सा हुआ हूं, एक दो बार थोड़ा सा डांटा भी। लेकिन भाईसाहब पास आएं और गाल पे प्यार कर लें, कोई गुस्सा रह सकता है भला!

भाईसाहब ने दिनभर टीवी देखी है। आप क्रिकेट नहीं देख सकते, उनकी टीवी बंद नहीं कर सकते। मम्मा माना करे तो रो दें। उपाय बस एक है- नेट बंद कर दो। लास्ट रिसॉर्ट में वही करना पड़ता है।
ढेर सारी बातें करने लगे हैं। पापा मेरे साथ कार चलाओ, और बस किसी खिलौने के रिंग को लेकर खुद स्टीयरिंग घुमाने की एक्टिंग करने लगते हैं और पापा को भी जबरन करवाते हैं, न करो तो आंसू तो हैं हीं! जू...जू.. ऊ.. ऊ.. करके पापा और बेटे की गाड़ी चल गई है। एक में भाईसाहब नाना को ले आए हैं, एक में पापा दादू को! 250Km पंद्रह मिनट में कार से!
"पापा नानू, दादू को खाना खिला दें?" मैं हां बोलता हूं। भाईसाहब का इमेजिनेशन है... झूठमूट का खाना झूठमुट सामने बैठे दादू, नानू को अपने हाथों से खिलाया जाता है।
"शौर्य आपके नानू का नाम क्या है?"
"सुलेश नानू" भाईसाहब बड़े क्यूटली बोलते हैं।
"दादू का?"
,"वि.. द.. ल... दादू"
सबके नाम धीमे धीमे पता हो गए हैं। सबकुछ समझने लगे हैं। लगने लगा है की बड़ी तेजी से बड़े हो रहे हैं ये...।
ग्रो स्लो माय चाइल्ड... ग्रो स्लो!

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