Friday, November 18, 2016

बरगद से सिकोया की ओर | Arvind k Sen

कारोबारी मामलों के जानकार अक्सर भारतीय कर-व्यवस्था की तुलना बरगद के पेड़ से करते हैं। ऐसी व्यवस्था, जिसका बरगद के पेड़ की भांति खूब फैलाव है, जिसके कर प्रावधान बरगद की जड़ों की माफिक आपस में उलझे हुए हैं और बरगद की तरह ही कर प्रावधानों की ऊंचाई (पहुंच) कम होने के कारण बड़े पक्षी (करवंचक) पकड़ में नहीं आते हैं। इसके विपरीत, दुनिया की सफल कर-व्यवस्थाओं को सिकोया के पेड़ की संज्ञा दी जाती है। ऐसी कर प्रणालियां, जो सिकोया के पेड़ की तर्ज पर सीधी और स्पष्ट हैं, जिनका फैलाव कम और गहराई ज्यादा है। सीधी-सपाट होने के कारण सिकोया पेड़ जैसी कर प्रणालियों में उलझाव की गुंजाइश कम होती है, लिहाजा इन्हें लागू करना और कर उगाहना आसान होता है।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एक ऐसा निर्णय है जो हमारी कर-व्यवस्था को बरगद के उलझाव से निकाल कर सिकोया की स्पष्टता की ओर ले जाने वाला है। अगर कर-कानून सुपरिभाषित हों तो कर चुकाने वाले ईमानदार नागरिकों की परेशानियां कम हो जाती हैं, वहीं कानून में झोल कम होने के कारण उनका उल्लंघन करना भी आसान नहीं होता। समाज के लगभग सभी तबकों और राजनीतिक दलों ने जीएसटी के पक्ष में सहमति जताई है। ऐसे में सरकार ने अगले वित्तवर्ष से जीएसटी को लागू करने की योजना बनाई है। चूंकि यह नया कर है और कई मौजूदा कर (उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, वैट, चुंगी व प्रवेश कर) जीएसटी में समाहित हो जाने हैं, इसलिए कर अधिकारियों को जीएसटी के क्रियान्वयन से संबंधित प्रशिक्षण भी दिया जाना है।
इन दोनों चुनौतियों (प्रस्तावित कानून को अगले वित्तवर्ष से लागू करने तथा इसके क्रियान्वयन का प्रशिक्षण) को सुलझाने के लिए जरूरी है कि नए कर (जीएसटी) की दरें निर्धारित की जाएं और संसद का अनुमोदन लिया जाए। सरकार ने पहली चुनौती को सुलझा लिया है। राज्यों से विचार-विमर्श के बाद सरकार ने प्रस्तावित जीएसटी की दरें बीते दिनों घोषित की हैं। जीएसटी परिषद ने वस्तु एवं सेवा कर ढांचे के तहत 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की चार स्तर की दरें तय करके प्रस्तावित कर की मोटी-मोटी संरचना पेश कर दी है। हालांकि इस नई कर-व्यवस्था के संबंध में प्रशासनिक शक्तियों को साझा करने के सवाल पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अंतिम सहमति बनना बाकी है। अगर इस बिंदु पर भी बात बन जाती है तो जीएसटी की राह साफ हो जाएगी। इसके साथ ही पहली बार देश का आर्थिक एकीकरण होगा और सेवाओं एवं वस्तुओं के प्रवाह पर अंतरराज्यीय बाधाएं दूर होने से एक देशव्यापी साझा बाजार भी अस्तित्व में आएगा।
जीएसटी परिषद ने अलग-अलग वस्तुओं और सेवाओं की जुदा-जुदा दरें तय करके एक बहुस्तरीय कर-प्रणाली खड़ी करने का प्रयास किया है। हमारे देश की विविधता और लोगों की आमदनी में खासा फर्क होने के कारण प्रस्तावित बहुस्तरीय कर प्रणाली उचित ही है। मिसाल के तौर पर, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में शामिल खाद्यान्न (जैसे, चावल और गेहूं) जैसी आम उपभोग की चीजों पर शून्य प्रतिशत कर लगाया जाएगा। दूसरे लफ्जों में कहें तो फिलहाल खाद्यान्न पर जीएसटी नहीं लगाया जाएगा। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में शामिल आधी चीजों (पचास फीसद) के लिए शून्य प्रतिशत की दर तय की गई है। यह तथ्य सब जानते हैं कि कम आमदनी वाले लोगों का सबसे ज्यादा साबका उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में शामिल चीजों से ही पड़ता है। इस तरह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में शामिल जरूरी उपभोग की चीजों पर शून्य प्रतिशत की दर रखने का फायदा जाहिर तौर पर लोगों को मिलेगा।
GST की चार दरों का ऐलान; 5, 12, 18 और 28 फीसदी पर बनी सहमति
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हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि भले ही दर शून्य प्रतिशत रखी गई हो लेकिन ये चीजें जीएसटी के दायरे में हैं। इसलिए यह फायदा लंबे समय तक कायम रहेगा या नहीं, यह फैसला आने वाली सरकारों के हाथ में रहेगा। नया कर होने के कारण क्रियान्वयन के शुरुआती दौर में लोगों को दिक्कतें उठानी पड़ सकती हैं। इसी बात का खयाल रखते हुए सरकार ने व्यापक खपत वाली चीजों पर भी कर की दरें नरम रखी हैं। मसलन, मसालों और सरसों के तेल का उपयोग देश के तकरीबन हर घर में होता है। बड़ी खपत वाली इन चीजों पर पांच फीसद की दर प्रस्तावित की गई है। नरम कर दरें यहां पर आकर समाप्त हो जाती हैं।
इसके बाद सरकार ने वस्तुओं एवं सेवाओं की प्रकृति और उनका उपभोग करने वाले लोगों की आमदनी को ध्यान में रखते हुए धीरे-धीरे नरम से कठोर दरों का रुख किया है।
जैसे, नौकरीपेशा लोगों द्वारा उपभोग किए जाने वाले डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर बारह फीसद की दर प्रस्तावित की गई है। इसे कठोर दर तो नहीं कहा जाएगा लेकिन इसकी दर व्यापक खपत वाली चीजों से ज्यादा रखी गई है। बढ़ते शहरीकरण के कारण तेजी से बढ़ रहे मध्यवर्ग द्वारा उपभोग की जाने वाली चीजों मसलन साबुन, तेल, टूथपेस्ट और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों जैसे रेफ्रिजरेटर व स्मार्टफोन पर 18 फीसदी की दर प्रस्तावित की गई है। सामान्यतया नव मध्यवर्ग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का समर्थक रहा है और यह वर्ग बेहद आक्रामकता के साथ मीडिया व इंटरनेट माध्यमों के जरिए अपनी मांगें रखता रहा है।
फिलहाल टूथपेस्ट और स्मार्टफोन जैसी आधुनिक जीवन शैली वाली चीजों की बिक्री तेजी से बढ़ रही है। कहना मुश्किल है कि 18 फीसद की टैक्स-दर के प्रति नव मध्यवर्ग का क्या रुख होगा। धनाढ्य वर्ग द्वारा उपयोग की जाने वाली महंगी वस्तुओं (जिन्हें कराधान की भाषा में सफेद वस्तुएं कहा जाता है) और कारों पर लगने वाले कर की दर 28 फीसद रखी गई है। इससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। बल्कि भारत के समकक्ष विकासशील देशों में लक्जरी वस्तुओं पर इससे भी ज्यादा दरों पर कर वसूला जाता रहा है। अगर इसे 30 फीसद रखा जाता और मध्यवर्ग व निम्न आदमनी वाले समूह के बीच झूल रहे नव मध्यवर्ग के उपभोग वाली चीजों पर लगने वाले कर की दरों को 12 फीसद के बजाय 10 फीसद रखा जाता तो और उचित होता।
हालांकि तर्क दिया जा सकता है कि जीएसटी एक नया कर है और इसमें बेहद ऊंची दरों का नकारात्मक असर भी हो सकता है। जरूरत पड़ने पर बाद में भी दरें बढ़ाई जा सकती हैं। मगर अनुभव बताता है कि एक बार स्थापित होने के बाद कर की दरों में इजाफा करना बेहद मुश्किल होता है। खासतौर पर लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दल टैक्स-दरों में बढ़ोतरी करके किसी तबके को नाराज करने का सियासी जोखिम उठाने से बचते हैं। बहरहाल, मौज-मजे और शान-शौकत के लिए खरीदी जाने वाली बेहद महंगी चीजों और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं जैसे पान मसाला, तंबाकू और शीतल पेयों (मानव शरीर और अर्थव्यवस्था पर बेहद नकारात्मक असर डालने वाली इन चीजों को आर्थिक भाषा में ‘पापमय वस्तुएं’ या ‘सिनफुल थिंग्स’ कहा जाता है) पर कर की दर 28 फीसद प्रस्तावित की गई है।
इस मोर्चे पर भी सरकार ने एक बार फिर नरमी बरती है, जिसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। दुनिया के बाकी देशों में इस श्रेणी की चीजों पर ऊंची टैक्स-दरें लगाने की रवायत रही है, ताकि इनके उपभोग को हतोत्साहित किया जा सके। इससे दो फायदे होते हैं। एक, ऊंची कर-दरों के कारण के कारण कर-राजस्व में इजाफा होता है, और दूसरा, ऊंची कर-दरों के कारण इनके उपभोग में कमी आती है, जिसके चलते इन चीजों के उपभोग से पैदा होने वाली बीमारियों के इलाज पर खर्च होने वाली रकम बचती है। हमारे देश में भी लंबे समय से समाज का जागरूक तबका इन वस्तुओं पर ऊंची कर-दरों की मांग करता आया है। मगर इन वस्तुओं की निर्माता कंपनियां भी बराबर कर-दरें कम रखने की मांग करती रही हैं। संभव है कि सरकार इन वस्तुओं के कारोबारियों की तरफ से किए जा रहे प्रतिरोध के चलते इस श्रेणी की वस्तुओं पर ज्यादा ऊंची कर-दरें रखने का फैसला नहीं कर पाई।
बहरहाल, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जीएसटी जैसा विशाल और शक्तिशाली कर-विधान एक झटके में लागू नहीं किया जा सकता। कदम-दर-कदम ही इतने बड़े कर-सुधार को लागू किया जा सकता है। जीएसटी की बहुस्तरीय व्यवस्था उचित है, क्योंकि एक ही दर रहने से मुद्रास्फीति बढ़ने का अंदेशा था। कर श्रेणियां बन गई हैं, अब देखने वाली बात यह है कि कौन-सी वस्तुएं किस श्रेणी में आती हैं। इसके अलावा, सेवाओं पर लगने वाले करों की दरें घोषित होना बाकी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि अधिकतर सेवाओं पर 18 फीसद और जरूरी सेवाओं पर 12 फीसद की दर से कर लगाया जा सकता है। इस बारे में अंतिम निर्णय जीएसटी परिषद को लेना है।
खैर, सरकार को सेवाओं पर कर की दरें निर्धारित करते वक्त और वस्तुओं की श्रेणियां तय करते समय इस बात का खयाल रखना होगा कि कर-राजस्व में बढ़ोतरी हो लेकिन इसकी कीमत आम आदमी को न चुकानी पड़े। जीएसटी की बहुस्तरीय व्यवस्था में जुदा-जुदा वस्तुओं और सेवाओं का अलग-अलग श्रेणियों में आवंटन इस तरह हो कि उसमें हमारी अर्थव्यवस्था की मौजूदा खपत-प्रवृत्तियों की झलक हो। यानी जो ज्यादा आमदनी के साथ ज्यादा उपभोग करे, उस पर ज्यादा टैक्स और व्यापक उपभोग वाली जीवन की जरूरी चीजों पर कम टैक्स लगे। यही कराधान का स्वर्णिम नियम भी है।

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