Monday, May 2, 2016

तुम्हारी तस्वीर के नीचे 'एक खोई हुई लड़की' लिखा है.

तुम्हारे कपडे देख पीली गेंद याद आई
उसी रंग के कनस्तर में घी रखा था
उसी रंग के निशाँ सड़क पे, मेट्रो पे हैं.
मुझे रंग खास पसंद नहीं.
टन्न से कुतुबमीनार बजी
क़त्ल हुए सारे कास्तकार जमा हो गए
तुम्हारी फोटो पे पीछे के खम्बे
बुत नहीं, ज़िंदा है आकृतियां उसपे.
दफ़न कास्तकार हमें निहार रहे थे.
तुम्हारे बालों में फेर के उंगलियां
देवदूत सम्हाले रहे धरती
मैंने छुआ और चूमी गर्दन.
वहां होंठों के निशाँ ज़िंदा होंगे.
दो पोरों में समा गया चेहरा
आँखों में सागर है, नमक है
चूमता हूँ, खारे हो जाते हैं होंठ.
सीने से लगो तो, भींग जाता है दिल.
सिर्फ तुममें हुनर है
प्रेमी की गोद में सर रख सिसकने का.
छूने की तमन्ना लिए
तुम अपने हाथ पीछे खिसका लेती हो
जैसे ज़िन्दगी पार्क की बेंत हो
और सारी दुनिया मॉर्निंग वाक करती हमें घूर रही हो.
मेट्रो के डब्बों पे ऐड हैं
तुम्हारी तस्वीर के नीचे
'एक खोई हुई लड़की' लिखा है.
गालों पे वैसी ही दमक है
पहली दफे चूमा था, तब थी.
गर्भ में पलते रिश्ते को
नागरिकशास्त्र की उस किताब ने मारा
जो कभी लिखी नहीं गई.
अब तुम्हारे पिता अपने अर्थशास्त्र से
पति खरीदेंगे.

1 comment:

अरुण चन्द्र रॉय said...

अच्छी कविता। शुभकामनाएं