हम सेलिब्रेट कर रहे थे और मोबाइल से फ़ोटो खींच रहे थे, कि सहसा भाईसाहब मेरे हाथ से "पापा मैं भी, मैं भी..." कहकर मोबाइल ले लेते हैं। अगले दस मिनट तक भाईसाहब उनके वजन के हिसाब से भारी मोबाइल सम्हालते हुए, फोकस कर फोटो क्लिक करने की कोशिश में बिताते हैं। जबतक उनका हाथ बटन तक जाता है, तब तक मोबाइल झुक जाता है, बेचारे फिर सम्हालते हैं... और फिर वही कोशिश दुहराते हैं।
मुझे अप्रत्याशित रूप से बड़ी क्रिएटिव लगती है और मैं उन्हें गले लगा लेता हूं।
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