Tuesday, December 13, 2016

ये नज़्म


उन सारी प्रेमिकाओं के नाम
जो आईं कोई करार ले,
गईं कोई दरार दे.
जो थीं तो
वादे थे, सपने थे, इरादे थे.
दिन थे, रात थी, नींद थी.
मोबाइल में सस्ते कॉल रेट के
प्लान हुआ करते थे,
घर में महक वाले
डेयोडेरेन्ट रहते थे.

अपनी कमाई से गिफ्ट देने
जिनके लिए ट्यूशन लिए मैंने.
दूसरे शहर रही जो
तो चाँद साथ तका करते थे
उस दौर में जिनके लिए हम
पैसों की किल्लत में रहा करते थे,
शहर शहर फिरा करते थे.

जो गईं तो इस तरह कुछ-
'वालिद नहीं माने कभी
हमारे सपने अलग अलग के बहाने कहीं,
साथ एक छत के नीचे रहे
फिर भी हमको वो जाने नहीं.'

दो तालियां,
तीन गलियां,
तमाम बहानों के नाम.
ये नज़्म उन सारी प्रेमिकाओं के नाम.

कर मशक्कत
हमने-तुमने सपने हज़ार बुने,
घर बनाया, सज़्ज़ा की
फिर इश्क़ में तन्हा तार चुने!

चिर यौवन न ठहरा है, न ठहरेगा
दिल जैसे धड़का है, न धड़केगा
तुम जाती थी, भले चली जाती
बस चिर-मुस्कान दिखलाती जाती
शादी में बुलाती जाती.

तेरे दूल्हे से मैं दो बातें कर लेता
गुस्सा, प्यार, ऑन-ऑफ मूड,
कब तू काइंड, कब तू रूड,
ये सब तो बतलाता जाता,
तेरा आने वाला कल
थोड़ा इजी बना जाता.

जो गईं छोड़ कर
नहीं बुलाईं ब्याह पर
घर- बाहर जिनके लिए हुए बदनाम
ये नज़्म,
उन सारी प्रेमिकाओं के नाम.

जो गईं तो गईं
कितनी रातें छोड़ गईं,
कितनी यादें छोड़ गईं

जिनके होंठों का स्वाद जुबां पर
अब भी कभी कभी आ जाता है
जिनकी सिसकी का अहसास
कभी कभी बहका जाता है.
जिनकी ऑंखें चूमे बगैर
रात न कभी बिताई थी
जिनकी शॉपिंग फ़िज़ूल की खर्चाई थी.

होंठों के नाम, आँखों के नाम
बदन पे चिपके बोसों के नाम.
ये नज़्म,
ये आखिरी नज़्म
उन सारी प्रेमिकाओं के नाम.

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