तुम बुद्ध की उम्र तक
पहुँचते-पहुँचते वैरागी होने वाले हो.
अफ़सोस! मेरे अंदर लौ उत्पन्न न हुई.
मैंने अपना वक़्त अप्राप्य प्रेम में लगाया,
शुक्र है तुमने खुद को मांजने में.
तुम्हें बुद्ध वहां पहाड़ों में नहीं मिलना था,
न मिला होगा, न मिलेगा.
तुम बुद्ध हो,
अन्तर्निहित बुद्ध है.
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