अंतर प्रशांत साझेदारी समझौता (ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट या टी पी पी ए) पर इसी वर्ष फरवरी में 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते पर पहुंचने में पांच वर्ष का समय लगा था। साथ ही यह उम्मीद थी कि प्रत्येक देश द्वारा स्वीकृति प्रदान किए जाने के दो वर्ष के भीतर यह लागू हो जाएगा। परंतु अब इस विवादास्पद समझौते पर संकट के बादल छा गए हैं। त्रासदी यह है कि अमेरिका जिसने इस समझौते की प्रक्रिया प्रारंभ की थी वही इसे समाप्त करने पर तुला हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में टी पी पी ए सर्वाधिक प्रमुखता वाला मुद्दा बन गया है। वैसे डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव अभियान का केंद्र बिंदु टी पी पी ए का विरोध ही है। पूर्व उम्मीदवार बर्नी सेंडर्स, जो कि टी पी पी ए विरोध के अगुआ हैं, का कहना है, ‘‘हमें टी पी पी पर पुन: बातचीत नहीं करना चाहिए। इस उन्मुक्त, मुक्त व्यापार समझौते (एफ टी ए) को नष्ट कर देना चाहिए क्योंकि इससे हमारे यहां के पांच लाख रोजगार नष्ट हो जाएंगे। हिलेरी क्ंिलटन भी अपने विदेशमंत्री पद के दौरान के अभिमत के विपरीत जाकर अब टी पी पी ए के खिलाफ हो गई हैं। परंतु उनके इस हृदय परिवर्तन को लेकर संदेह किया जा रहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह अपना रुख पुन: बदल लेंगी। परंतु क्ंिलटन का कहना है,’’ मैं टी पी पी ए खिलाफ हूं। इसका अर्थ है चुनाव के पहले भी और बाद में भी।’’
इस बात की पूरी संभावना है कि दोनों उम्मीदवार इस प्रचलित धारणा को लेकर चिंतित हो रहे हैं, जिसके अनुसार मुक्त व्यापार समझौतों से लाखों रोजगार समाप्त होते हैं, मजदूरी में ठहराव आता है और अमेरिका समाज में लाभों का अनुचित वितरण होता है। राष्ट्रपति पद के इन दो उम्मीदवारों के अलावा दो अन्य खिलाड़ी और भी हैं जो कि टी पी पी ए की निर्यात के बारे में तय करेंगे। यह हैं राष्ट्रपति बराक ओबामा और अमेरिकी कांग्रेस। ओबामा टी पी पी ए के मुख्य पैरोकार रहे हैं। उन्होंने अत्यन्त उत्कटता से यह कहते हुए इसके पक्ष में तर्क दिए हैं कि इससे आर्थिक लाभ होंगे,पर्यावरण एवं श्रम मानकों में सुधार होगा और एशियाई भौगोलिक राजनीति में अमेरिका चीन से आगे निकल जाएगा। लेकिन अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिली है। यह आवश्यक है कि अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ओबामा से 8 नवंबर से होने वाले कांग्रेस की सुस्ती भरी कांग्रेस में और जनवरी 2017 के मध्य तक इसे अवश्य ही पारित करवा लें। वैसे अभी तक यह अस्पष्ट है कि इस मरे-मराए से टी पी पी विधेयक को अगर सदन के पटल पर रखा जाता है तो इसे पारित करवाने जितना सहयोग उन्हें मिल भी पाएगा कि नहीं। पिछले वर्ष इससे संबंधित एक फास्टट्रेक व्यापार अधिकारिता विधेयक बहुत कम बहुमत से पारित हो पाया था। अब जबकि यह ठोस टी पी पी ए सदन के सामने आने वाला है तो कई सदस्यों के मत में परिवर्तन आ रहा है। ऐसे कुछ सांसद जिन्होंने फास्टट्रेक विधेयक के पक्ष में मत दिया था उन्होंने संकेत दिया है कि वे टी पी पी ए के पक्ष में मतदान नहीं करेंगे।
अधिकांश ड्रेमोक्रेट सांसदों ने संकेत दिया है कि वे टी पी पी ए के खिलाफ हैं इसमें क्ंिलटन के साथ उपराष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे सीनेटर टिम कैनी भी शामिल है, जिन्होंने फास्ट ट्रेक के पक्ष में मत दिया था। कार्यकारी समिति के सदस्य सेन्डी लेविन का कहना है, अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि सदन में इस वर्ष टी पी पी ए को मत नहीं मिलेंगे। यदि प्रस्तावित ढीले-ढाले सत्र में इसे प्रस्तुत कर भी दिया जाता है तो यह गिर जाएगा। सदन के रिपब्लिकन नेताओं ने भी अपना विरोध जताया है। सीनेट में बहुमत के नेता मिच मॅक्कोमेल का कहना है राष्ट्रपति पद के अभियान ने एक ऐसा राजनीतिक वातावरण बना दिया है कि इस सत्र में टी पी पी को पारित कराना वस्तुत: असंभव हो गया है। सदन के स्पीकर और रिपब्लिकन नेता पॉल डी रियान, जिन्होंने फास्ट ट्रेक विधेयक तैयार करने में मदद की थी, का कहना है कि इस बात का कोई कारण नजर नहीं आता कि इस सुस्ती भरे सत्र में टी पी पी को मतदान के लिए प्रस्तुत किया जाए, क्योंकि हमारे पास इसे पारित जितने लिए मत नहीं हैं। इस बीच सदन में छ: रिपब्लिकन सीनेटरों ने अगस्त के प्रारंभ में ओबामा को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि इस सत्र में वह टी पी पी विधेयक लाने का प्रयास न करें।
हालांकि ओबामा के लिए तस्वीर धुंधली नजर आ रही है, परंतु उन्हें कमतर नहीं समझना चाहिए। उन्होंने कहा है कि चुनाव सम्पन्न हो जाने के बाद वह कांग्रेस को टी पी पी के पक्ष में मतदान करने के लिए मनवा लेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि बहुत से लोग सोचते थे कि वे सदन से फास्ट ट्रेक विधेयक पारित नहीं करवा पाएंगे, परंतु वे गलत साबित हुए। कांग्रेस को अपने पक्ष में लेने के लिए ओबामा को दक्षिण व वाम दोनों पक्षों को भरोसा में लेना पड़ेगा जो कि टी पी पी ए में कुछ विशिष्ट मुद्दों जैसे जैविक औषधियों पर एकाधिकार तथा आई एस डी एस (निवेशक-राष्ट्र विवाद निपटारा) को शामिल करवाना चाहते हैं। उन्हें संतुष्ट करने के लिए ओबामा को उन्हें भरोसा दिलवाना होगा जो वह चाहते हैं उसे किसी न किसी तरह से प्राप्त किया जा सकता है, भले ही वह टी पी पी ए का वैधानिक हिस्सा न भी हो। वह इसे द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से पाने का प्रयास करेंगे या इस बात पर जोर देंगे कि कुछ देश टी पी पी ए के प्रावधानों से इतर जाकर कर कुछ अतिरिक्त करें। वैसे भी टी पी पी ए के दायित्वों को पूरा कर पाने के लिए अमेरिका का प्रमाणन एक जरुरी शर्त है। कांग्रेस को खुश करने के लिए ओबामा टी पी पी ए की कुछ विशिष्ट धाराओं पर सैद्धान्तिक रूप से पुन: बातचीत भी कर सकते है। लेकिन अन्य टी पी पी देशों को यह विकल्प अस्वीकार्य हो सकता है।
इसी वर्ष जून में मलेशिया ने टी पी पी ए की किसी भी धारणा पर पुन: समझौते से इंकार कर दिया था। तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं उद्योग मंत्रालय की महासचिव डॉ. रेबेका फातिमा स्टामारिया का कहना है- अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों ने भले ही इस तरह के संकेत दिए हों लेकिन टी पी पी ए पर पुन: वार्ता का प्रश्न ही नहीं उठता। सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली ह्सिन लूंग ने अपनी हालिया वाशिंगटन यात्रा के दौरान टी पी पी ए के किसी भी हिस्से पर पुनर्विचार की संभावना को सिरे से नकारते हुए कहा कि भले ही कुछ सांसद ऐसा चाहते हों यह संभव नहीं है। जनवरी में कनाडा के व्यापार मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलेंड ने कहा था टी पी पी पर पुर्नवार्ता संभव नहीं है। जापान ने भी पुर्नवार्ता की संभावना को नकार दिया है। 12 देशों ने इसी वर्ष फरवरी में समझौते पर हस्तक्षर कर दिए हैं और इसे लागू करने के लिए दो वर्षों का समय दिया है। सैद्धांतिक तौर पर देखें तो यदि इस वर्ष टी पी पी लागू नहीं हो पाता है तो अमेरिकी राष्ट्रपति अगले वर्ष इसे संसद से पारित करवा सकते हैं। लेकिन ऐसा हो पाने की संभावना अत्यन्त क्षीण है। अतएव टी पी पी ए को इसी अलसाए सत्र में ही पारित करवाना होगा। अन्यथा यह हमेशा के लिए चर्चा से बाहर हो जाएगा। गौरतलब है कि नाटकीय ढंग से मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ कम से कम उस अमेरिका में जनमत बना है। जिसने व्यापार मुक्त व्यापार समझौतों की शुरुआत की थी।
(लेखक जेनेवा स्थित साउथ सेन्टर के कार्यकारी निदेशक हैं।) | http://www.deshbandhu.co.in/article/6188/10/330#.WC_dwvl97IW
इस बात की पूरी संभावना है कि दोनों उम्मीदवार इस प्रचलित धारणा को लेकर चिंतित हो रहे हैं, जिसके अनुसार मुक्त व्यापार समझौतों से लाखों रोजगार समाप्त होते हैं, मजदूरी में ठहराव आता है और अमेरिका समाज में लाभों का अनुचित वितरण होता है। राष्ट्रपति पद के इन दो उम्मीदवारों के अलावा दो अन्य खिलाड़ी और भी हैं जो कि टी पी पी ए की निर्यात के बारे में तय करेंगे। यह हैं राष्ट्रपति बराक ओबामा और अमेरिकी कांग्रेस। ओबामा टी पी पी ए के मुख्य पैरोकार रहे हैं। उन्होंने अत्यन्त उत्कटता से यह कहते हुए इसके पक्ष में तर्क दिए हैं कि इससे आर्थिक लाभ होंगे,पर्यावरण एवं श्रम मानकों में सुधार होगा और एशियाई भौगोलिक राजनीति में अमेरिका चीन से आगे निकल जाएगा। लेकिन अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिली है। यह आवश्यक है कि अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ओबामा से 8 नवंबर से होने वाले कांग्रेस की सुस्ती भरी कांग्रेस में और जनवरी 2017 के मध्य तक इसे अवश्य ही पारित करवा लें। वैसे अभी तक यह अस्पष्ट है कि इस मरे-मराए से टी पी पी विधेयक को अगर सदन के पटल पर रखा जाता है तो इसे पारित करवाने जितना सहयोग उन्हें मिल भी पाएगा कि नहीं। पिछले वर्ष इससे संबंधित एक फास्टट्रेक व्यापार अधिकारिता विधेयक बहुत कम बहुमत से पारित हो पाया था। अब जबकि यह ठोस टी पी पी ए सदन के सामने आने वाला है तो कई सदस्यों के मत में परिवर्तन आ रहा है। ऐसे कुछ सांसद जिन्होंने फास्टट्रेक विधेयक के पक्ष में मत दिया था उन्होंने संकेत दिया है कि वे टी पी पी ए के पक्ष में मतदान नहीं करेंगे।
अधिकांश ड्रेमोक्रेट सांसदों ने संकेत दिया है कि वे टी पी पी ए के खिलाफ हैं इसमें क्ंिलटन के साथ उपराष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे सीनेटर टिम कैनी भी शामिल है, जिन्होंने फास्ट ट्रेक के पक्ष में मत दिया था। कार्यकारी समिति के सदस्य सेन्डी लेविन का कहना है, अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि सदन में इस वर्ष टी पी पी ए को मत नहीं मिलेंगे। यदि प्रस्तावित ढीले-ढाले सत्र में इसे प्रस्तुत कर भी दिया जाता है तो यह गिर जाएगा। सदन के रिपब्लिकन नेताओं ने भी अपना विरोध जताया है। सीनेट में बहुमत के नेता मिच मॅक्कोमेल का कहना है राष्ट्रपति पद के अभियान ने एक ऐसा राजनीतिक वातावरण बना दिया है कि इस सत्र में टी पी पी को पारित कराना वस्तुत: असंभव हो गया है। सदन के स्पीकर और रिपब्लिकन नेता पॉल डी रियान, जिन्होंने फास्ट ट्रेक विधेयक तैयार करने में मदद की थी, का कहना है कि इस बात का कोई कारण नजर नहीं आता कि इस सुस्ती भरे सत्र में टी पी पी को मतदान के लिए प्रस्तुत किया जाए, क्योंकि हमारे पास इसे पारित जितने लिए मत नहीं हैं। इस बीच सदन में छ: रिपब्लिकन सीनेटरों ने अगस्त के प्रारंभ में ओबामा को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि इस सत्र में वह टी पी पी विधेयक लाने का प्रयास न करें।
हालांकि ओबामा के लिए तस्वीर धुंधली नजर आ रही है, परंतु उन्हें कमतर नहीं समझना चाहिए। उन्होंने कहा है कि चुनाव सम्पन्न हो जाने के बाद वह कांग्रेस को टी पी पी के पक्ष में मतदान करने के लिए मनवा लेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि बहुत से लोग सोचते थे कि वे सदन से फास्ट ट्रेक विधेयक पारित नहीं करवा पाएंगे, परंतु वे गलत साबित हुए। कांग्रेस को अपने पक्ष में लेने के लिए ओबामा को दक्षिण व वाम दोनों पक्षों को भरोसा में लेना पड़ेगा जो कि टी पी पी ए में कुछ विशिष्ट मुद्दों जैसे जैविक औषधियों पर एकाधिकार तथा आई एस डी एस (निवेशक-राष्ट्र विवाद निपटारा) को शामिल करवाना चाहते हैं। उन्हें संतुष्ट करने के लिए ओबामा को उन्हें भरोसा दिलवाना होगा जो वह चाहते हैं उसे किसी न किसी तरह से प्राप्त किया जा सकता है, भले ही वह टी पी पी ए का वैधानिक हिस्सा न भी हो। वह इसे द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से पाने का प्रयास करेंगे या इस बात पर जोर देंगे कि कुछ देश टी पी पी ए के प्रावधानों से इतर जाकर कर कुछ अतिरिक्त करें। वैसे भी टी पी पी ए के दायित्वों को पूरा कर पाने के लिए अमेरिका का प्रमाणन एक जरुरी शर्त है। कांग्रेस को खुश करने के लिए ओबामा टी पी पी ए की कुछ विशिष्ट धाराओं पर सैद्धान्तिक रूप से पुन: बातचीत भी कर सकते है। लेकिन अन्य टी पी पी देशों को यह विकल्प अस्वीकार्य हो सकता है।
इसी वर्ष जून में मलेशिया ने टी पी पी ए की किसी भी धारणा पर पुन: समझौते से इंकार कर दिया था। तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं उद्योग मंत्रालय की महासचिव डॉ. रेबेका फातिमा स्टामारिया का कहना है- अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों ने भले ही इस तरह के संकेत दिए हों लेकिन टी पी पी ए पर पुन: वार्ता का प्रश्न ही नहीं उठता। सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली ह्सिन लूंग ने अपनी हालिया वाशिंगटन यात्रा के दौरान टी पी पी ए के किसी भी हिस्से पर पुनर्विचार की संभावना को सिरे से नकारते हुए कहा कि भले ही कुछ सांसद ऐसा चाहते हों यह संभव नहीं है। जनवरी में कनाडा के व्यापार मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलेंड ने कहा था टी पी पी पर पुर्नवार्ता संभव नहीं है। जापान ने भी पुर्नवार्ता की संभावना को नकार दिया है। 12 देशों ने इसी वर्ष फरवरी में समझौते पर हस्तक्षर कर दिए हैं और इसे लागू करने के लिए दो वर्षों का समय दिया है। सैद्धांतिक तौर पर देखें तो यदि इस वर्ष टी पी पी लागू नहीं हो पाता है तो अमेरिकी राष्ट्रपति अगले वर्ष इसे संसद से पारित करवा सकते हैं। लेकिन ऐसा हो पाने की संभावना अत्यन्त क्षीण है। अतएव टी पी पी ए को इसी अलसाए सत्र में ही पारित करवाना होगा। अन्यथा यह हमेशा के लिए चर्चा से बाहर हो जाएगा। गौरतलब है कि नाटकीय ढंग से मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ कम से कम उस अमेरिका में जनमत बना है। जिसने व्यापार मुक्त व्यापार समझौतों की शुरुआत की थी।
(लेखक जेनेवा स्थित साउथ सेन्टर के कार्यकारी निदेशक हैं।) | http://www.deshbandhu.co.in/article/6188/10/330#.WC_dwvl97IW
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