Thursday, October 8, 2015

प्रेम

एक रोज पत्थर पे
परीकथाएं रख में
छन्न से तोड़ दूंगा सारी.
बारूद रख दूंगा प्रेम की कविताओं में
और जबरदस्ती सोहनी-महिवाल, लैला-मजनूँ के ब्याह करा दूंगा.

फिर देखता हूँ
कैसे अमर होती है कोई प्रेम-कथा,
कैसे बचता है प्रेम.

मुझे 'हैप्पिली लिविंग आफ्टर...'
का सच भी कोई बताओ.
जिनमें सीताएं अग्नि परीक्षाएं देती हैं, राम शासक होते हैं,
जिनमें कृष्णा को रुक्मणी सौलह हज़ार औरतों के संग बांटती हैं.
जिनमें एक बड़ी सी गाड़ी का औरत छोटा पहिया होती है,
जिससे गाड़ी तो चलती है लेकिन औरत की मर्जी जाने बिना ही.

प्रेम एक ढकोलसे से ज्यादा कुछ भी नहीं.
प्रेम बिछोह से सास्वत होता है,
प्रेम साथ होता है तो
वहां प्रेम के अलावा सबकुछ होता है.

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