मैं चाहता हूँ
दफ़न कर दी जाएँ
चाँद की कसम ले के
कही गयीं तमाम बातें,
बेदखल कर दिए जाएँ
ईमानदारी से रिश्ते निभाते लोग.
हर रात कर दी जाये अमावस और बुझा दिए जाएँ सारे तारे.
किसी करवट पे पड़े ख्वाब तोड़ दिए जाएँ,
निर्वासित कर दी जाएँ वो ऑंखें
जिन्हें देख,
ख़ुदा यहीं-कहीं नज़र आता था.
कठघरे में खड़ा कर देता हूँ,
कभी खुद को, कभी तुमको.
हर दफे तुम्हें देता हूँ सज़ा-ए-मौत.
फिर ज़िंदा ही दफ़न करता हूँ खुद को,
क्यूंकि मरे हुए लोग फिर से नहीं मर सकते.
1 comment:
सिर्फ कहने की नहीं है....बात समझने की है।
और अगर एहसास में ले जाये कोई तो क्या बात है।
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