Wednesday, May 9, 2012

तू, सत्यमेव जयते, गुलज़ार ....एंड व्हाट द हेल!!!

                                                                                                                                          
         
                      मैं उससे जी भर लड़कर गुस्से से फ़ोन  रखता हूँ, .......मोबाइल!....सीधा स्विच  ऑफ......हमारे बीच  गुस्सा जताने का सबसे बेहतरीन तरीका है........ अपने अन्दर को कुछ  हल्का करने केप्प्री में ही घर से निकल  आता हूँ......कुछ  फलांग  पर मंदिर है...... धीरे-धीरे से मंदिर के अन्दर घुसता हूँ, जैसे यहाँ आना ज़रूरी नहीं था, लेकिन और कोई जगह भी तो इतनी शांत  नहीं होती!! ......भगवान् अब भी वहीं हैं, ज्यूँ के त्यों।.......मूर्तियों की भी अजीब सी आदत  होती है, जहां भी बिठा दो वहीं बैठ जाती हैं, बिना कोई  शिकायत के....... मैं बड़े गौर से देखता हूँ.......फिर मुझे गुलज़ार की 'इक  ज़रा छींक  ही दो तुम, तो यकीन आये की सब देख  रहे हो......' याद आता है। मैं आरती मूर्ति के थोड़ी और पास  ले जाता हूँ, फिर भी भगवान वहीं हैं ज्यों की त्यों. शायद वहां नहीं हैं!! शायद कही नहीं है !!!!
......मंदिर की दीवार पर किसी पोस्टर के नीचे अंग्रेजी में लिखा हुआ  है.......'जैन  इज  द  बेस्ट  रिलीजन।...' ......मुझे कम्युनिटी का सेक्स-रेशिओ याद आता है.......हज़ार पर सात सौ नब्बे लडकियां और इस  हफ्ते का सत्यमेव जयते भी......सुना था जैन  लोग अंडे तक  नहीं खाते!!!!
                            फूहड़ता के बीच सत्यमेव जयते का आना अच्छा है.....पढ़ा-लिखा होना आपके न  तो संवेदनशील  होने की निशानी है, ना ही समझदार होने की, न  ही आपके अच्छे या बुरे होने की।..........किसी ब्लॉग  पे पढ़ा था 'डाक्टर्स  पोलिश्ड कमीनों  की जमात है।......' उनका तो नहीं पता लेकिन संभ्रांत  वर्ग  ज़रूर 'पोलिश्ड कमीनों की ज़मात'  लगता है।
                   .........वो मेरे भाई के नंबर पर कॉल  करती  है, 'तुम्हारा मोबाइल  क्यों बंद था?' फिर वही तीखी नोंक-झोंक .........उसके बाद बहुत सी हंसी! मुझे 'वो' याद आता है, उसने कहा था, तुम्हारी जन्मतिथि 23 अगस्त और उसकी ...**.. ......मतलब यू आर इन  बेटवीन लिओ  एंड विर्गो एंड शी  इज़  विर्गो, लगभग  एक  ही राशि है भाई, कभी बनेगी कभी नहीं।' ........कंप्यूटर पर 'कुंडली' मिलाता हूं...... कुल  उन्नीस गुण! अंग्रेजी में लिखा  है- 'आधे से ज्यादा हैं!! निभेगी! लेकिन ज्यादा मिलते तो अच्छा था'.........व्हाट  द  हेल!!!!

अंत में.....
              'गुलज़ार' साहब....वैसे ही जैसे हैं........सीधे-सीधे बतियाते....


चिपचिपे दूध से नहलाते हैं, आंगन में खड़ा कर के तुम्हें 
शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
घोल के सर पे लुढ़काते हैं गिलासियाँ भर के

औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर
पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो
इक पथराई सी मुस्कान लिए
बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी

जब धुआँ देता, लगातार पुजारी
घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर
इक जरा छींक ही दो तुम
तो यकीं आए कि सब देख रहे हो. 

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                            मैं उसे सत्यमेव जयते देखने को कहता हूँ, वो मना कर देती है।....लगता है समाज  में लडकियां सिर्फ  पेट में ही नहीं मरती!!!!!

5 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गहन बात ....

दिगम्बर नासवा said...

नौस्तेल्जिक ... जो भी मन में आता जा रहा है हूबहू जैसे उतार दिया हो ...
सब कुछ गडबडझाला .... दिमाग की नसें फटने लगी हों ... और फिर मंदिर में अचानक छींक की आवाज़ ...
यकीन तो फिर भी नहीं आयगा कों तुम देख रहे हो ...

VIVEK VK JAIN said...

again it happened.....digmbar naswa ji ka comment fir publish ni hua.....
pta nhin kya reason h... filhal unka comment ye rha.

'
नौस्तेल्जिक ... जो भी मन में आता जा रहा है हूबहू जैसे उतार दिया हो ...
सब कुछ गडबडझाला .... दिमाग की नसें फटने लगी हों ... और फिर मंदिर में अचानक छींक की आवाज़ ...
यकीन तो फिर भी नहीं आयगा कों तुम देख रहे हो ... '

Noopur said...

Bohot gehrai se soch k likha he...well done :)

RAJNISH ................ said...

hmmmmmmm.......very nice keep it up.....