एसा क्यूँ होता है, कुछ लोग कहना नहीं चाहते, पर हकीक़त उन्हें भी पता होती है, की सच उसे भी पता चल गया होगा, क्यूंकि कोई तुम्हे अनकहे भी पढ़ सकता है, वो लफ्ज़ भी जो कहे न गये हों, या वो भी जो शब्दों के बीच से निकल के आ रहे हों......
उम्र की टकसाल से निकला दिन,
हमेशा एक सा नहीं होता,
कुछ होते हैं थोड़े से स्याह,
कुछ थोड़े से खुश्क,
कुछ थोड़े से नर्म .
कुछ पाले से सफ़ेद,
बर्फ से शीतल.....
हर एक दिन नया यहाँ.
आज मैंने फिर एक दिन जी लिया
उम्र की टकसाल से निकला
एक दिन.......
तुम्हे पता तो है आज का दिन कैसा था.
4 comments:
बिलकुल नया बिम्ब ... सुंदर प्रस्तुति
उनके साथ जिया हर दिन सच में जिया ही होता है ... फिर चाहे किसी भी टकसाल से निकाला हूँ ये दिन ...
और अगर उम्र की टकसाल से निकला हर दिन ऐसे बीते तो फिर बात ही क्या ...
गज़ब का ख्याल है ...
Digambar Naswa ji ka comment......... pta ni publish kyu ni hua, shayad blogger nithalla ho gya h. chalo mei jyu ka tyu utaare deta hu.
उनके साथ जिया हर दिन सच में जिया ही होता है ... फिर चाहे किसी भी टकसाल से निकाला हूँ ये दिन ...
और अगर उम्र की टकसाल से निकला हर दिन ऐसे बीते तो फिर बात ही क्या ...
गज़ब का ख्याल है ...
बेहतरीन कविता.
मित्र हरीश जोशी की कविता याद आ गयी....
उम्र काटनी कितनी आसान है,
और दिन काटना कितना मुश्किल,
क्या क्या नहीं घटित होता एक दिन में...
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