Sunday, November 22, 2009

कब तक, आखिर कब तक?

करता रहूँ इंतज़ार,
तन्हाई से प्यार....
साँसों की कसक,
दिल की दरक से बेकरार.
कब तक, आखिर कब तक?

दूर देश में,
पपीहे सा बैठा हूँ,
गान गाये तेरा,
अरमान लिए बैठा हूँ.
यादों को बसाए,
सपनों को जगाये,
इक आस लिए बैठा हूँ,
इक प्यास लिए बैठा हूँ.

ये दूरी,
काश कुछ पल की होती.
सिसकता नहीं मन फिर!
अब,
सितम नहीं सहा जाता.
कब आओगे?
कब तक, आखिर कब तक.

देश मेरा ये है,
वो परदेश!
लौट आओ तुम,
पास, बिलकुल पास,
कि साँसे भी,
बीच में न आयें.
नहीं होता इंतज़ार!
राहें देखूं कब तक??
कब तक, आखिर कब तक?

3 comments:

Prakash Jain said...

kab tak aakhir kab tak

umda lekhan

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

kab tak aakhir kab tak tumhari ye rachna mujhe kaafi acchi lagi..........
aur achha likhte raho bless u.......

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

nice keep it up...........
bless u.......