मेरे जंगल में गुम होने की कई जगह हैं, जहां एकांत में बैठ लिखा जा सकता है, अपने उन्नीदे शब्द उकेरे जा सकते हैं, किंतु वहां बैठ लेखनी नहीं उभरती। वहां का अपना सौंदर्य है, जो सम्मोहित कर लेता है। वहां बैठ बस उसे निहारने भर से जीवन गतिमान लगने लगता है।
लेखनी तब उभरती है जब ऑफिस में बैठे हों चेयर पर, सामने मिलने वाले हों और यकायक से तुम याद आ जाओ, तुम्हारे नन्हें हाथ याद आ जाएं, 'पापा-पापा' कहना याद आ जाए। मैं अतिथि के जाने तक उन शब्दों को जेहन में सहेजता हूं और जाते ही पेपर पर उकेरने की कोशिश करता हूं। आधे-अधूरे लफ्ज़ पेपर पर आ ही जाते हैं। ऐसी कितनी ही #शौर्य_गाथा-यें पेपर पर अधूरी लिखी हुई रखी हुई हैं। शायद जो पूर्ण हो पाई हैं, उनसे अधिक ये हैं।
लिखने से ज्यादा मैं तुम्हें महसूस करना सीख गया हूं। तुम्हारे साथ रहते थोड़ा ज्यादा बच्चा होना सीख गया हूं। बड़ा होते-होते बहुत कुछ मर गया था, थोड़ा-थोड़ा उसे महसूस कर रहा हूं। मोहब्बत को नए नजरिया से देख रहा हूं। ट्रू लव के मायने जान रहा हूं। अक्सर कहीं पढ़ा एक वाक्य जेहन में उभर आता है "एक पिता अपने बच्चों को सबसे अच्छा गिफ्ट क्या दे सकता है?" उत्तर है-"बच्चों की मां से और अधिक प्रेम कर सकता है।"
शायद तुम्हारे आने के बाद तुम्हारी मां से और अधिक प्रेम करने लगा हूं।
तुम्हारी कोमल हथेलियों ने मुझे और अधिक कोमल बनाया है। तुम्हारी हंसी ने मुझे अधिक सुख महसूस करना सिखाया है।
जिनके बच्चे हैं वे ये दो वाक्य अच्छे से समझ गए होंगे-
1. क्यों बच्चे भगवान का रूप कहलाते हैं, और
2. क्यों ये सृष्टि का भविष्य हैं।
तुमने मुझे दोनों समझाए हैं।
मैं फोटो खींचने में बहुत आलसी हूं। इन कुछ महीने में अधिक फोटो लेना शुरू किया है। तुम्हारे लम्हे लफ्जों के अलावा चित्रों में सहेजना चाहता हूं।
तुम्हारे होने ने मुझमें बहुत सी तब्दीलियां लाई हैं। कुछ तो शब्दों में भी नहीं समा पाएंगी...
तुम्हारे पापा
फ़ोटो:
हम सींच रहे हैं
एक-एक पौधा.
वे गुलाब
हम उन्हें.
No comments:
Post a Comment