कितना वक़्त था
जो तुम्हारे बगैर
काटा न जा सकना था.
पर सारा ही कट रहा है
तुम्हारे बगैर.
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मुझसे जब तुम
उस शहर में मिलती हो
ज्यादा खूबसूरत लगती हो.
आँखें और बड़ा ताल,
माथा और मानव संग्रहालय
होंठ और भारत भवन.
कितनी समानता है न?
आँखों में जो सैलाब है
झील से कुछ ज्यादा ही है.
माथे पर बल
मानव संग्रहालय में दर्ज़ सभ्यताओं से ज्यादा हैं.
होंठों से झिरते लफ्ज़...
भारत भवन में भी उतने सुन्दर नहीं कहे किसी ने.
तुम हो मेरा शहर.
तो बताओ मेरे शहर,
तुमसे इश्क़ कर
क्यों न जाऊं तर!
जब तुम उस शहर होती हो,
ज्यादा खूबसूरत होती हो.
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तुम्हारे चूमकर पैर
मैं जाऊंगा घर.
पैर चूमकर
रिश्ता न सही
प्रेम मुकम्मल सा लगता है.
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तुमसे बात करने के बाद
कवितायेँ झरने लगती हैं.
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हम प्रेम को नहीं चुनते
प्रेम हमें चुनता है.
प्रेम मुकम्मल होगा या नहीं
ये समाज चुनता है.
(हीर की कब्र पर फूल हरे होंगे.)
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जिसके सीने से लिपट
क्रोध, मोह, माया, स्वार्थ,
काम, अहंकार, घृणा, द्वेष
त्यागा सा लगे.
उसी से तुम्हें सच्चा प्रेम है.
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कितने इतवार काटे मैंने
तुम्हारे इंतज़ार में.
बावन? पांच सौ बीस?
अब तो गिनती ही नहीं.
शतायु को बावन सौ
इतवार मिलते हैं.
तुम्हारे बगैर
हर इतवार शतायु होता है.
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मैं किसी दिन लिखूंगा
कोई कविता,
जो तुमसे ज्यादा खूबसूरत होगी.
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मैं चाहता हूँ,
किसी सिंधु घाटी सभ्यता
के किनारे
गढ़ना तुम्हें किसी कविता में.
हज़ारों साल बाद कोई देखे
कहे 'ओह! ब्यूटीफुल डांसिंग गर्ल!'
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तुम्हारी नाक
महावीर टेकरी सी है.
तुम्हारे अंगूठे
कोलर डैम छूटे हैं.
तुम मोहब्बत में जानं
मेरा भोपाल शहर हो जाती हो!
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कितने लोग थे
जिनके हिस्से पूरा प्यार नहीं आया.
और वे अधूरे जीते रहे.
तुन्हें कभी पता ही नहीं चला
की प्रेम के बाद
दुनिया कैसी होती है!
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