भाईसाहब अपने ननिहाल गए हैं. उनकी यशी दीदी उन्हें बहुत प्यार करती है. वो अभी मात्र साढ़े चार साल की है लेकिन समझदारी और बातों में दादी हो चुकी है. दीदी और ढाई साल के भाईसाहब दोनों दिनभर खेलते रहते हैं.
भाईसाहब ने खेल खेल में दीदी को मार दिया है. वो रोने लगी है. भाईसाहब को मम्मा की डांट पड़ती है, लेकिन उनपर कोई असर नहीं है.
दीदी को रोता देख उसके दादू कहते हैं: 'यशी आप भी शौर्य को डांट दो.'
भोली सी दीदी जवाब देती है: 'दादू, बेचारा बच्चा है, अभी अक्ल नहीं है. रहने देते हैं. अकल आ जाएगी तो नहीं करेगा ऐसा.' साढ़े चार साल की यशी की बात सुनकर सबको हंसी आ जाती है.
इतनी सी यशो और इतना बड़ा दिल! दादू अब उसे गोद में ले प्यार कर रहे हैं. भाईसाहब को देखकर शायद जलन हो रही है. वो भी दौड़ आकर पहुँच गए हैं. 'नानू..नानू ... मुझे भी.... दोदी (गोदी)... दोदी.'
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