पापा ऑफिस के लिए निकल रहे हैं... भाईसाहब आते हैं, Shoelaces बांधना शुरू कर देते हैं।^ पापा उन्हें ढेर सारी पुच्ची करते हैं... " पापा दल्दी (जल्दी) आना, बनाना (Banana) लाना" ये डिमांड रखते हैं।
पापा शाम में जल्दी आना और बनाना लाना दोनों भूल गए हैं... नौकरी में समय पर वश नहीं होता है। पापा आते ही खेलना शुरू कर देते हैं।
भाईसाहब पापा को पेट के बल लिटाते हैं, पीठ पर एक तकिया रखते हैं फिर उसपर बैठ जाते हैं। पापा के दोनों हाथ पकड़ लिए हैं, जैसे हैंडल हों और "ऊं... ऊं..." की आवाज निकाल कहते हैं "पापा मेली मोटलसाइकिल।" "पापा आप स्टाट (start) हो।" अब मोटरसाइकिल बने पापा भी "ऊं... ऊं..." की आवाज निकाल रहे हैं।
15 20 मिनट तक मोटरसाइकिल चलती है। भाईसाहब मम्मा को याद करने लगते हैं। पापा "मोटरसाइकिल टनल में जानी है, अंधेरा होने वाला है।" कहते हैं, लाइट बंद कर दी जाती है।
पापा भाईसाहब को कंधे पर लिए हैं... दौड़ रहे हैं "ऊं... ऊं..." बोल साथ में मोटरसाइकिल की आवाज निकाल रहे हैं। भाईसाहब अर्धनिद्रा में आ गए हैं... धीमे धीमे मम्मा... मम्मा... बोल रहे हैं।
नाना उनके पैरों की मालिश कर रहे हैं, नानी उन्हें समझा रही है, पापा उनका फेवरेट खिलौना डंप ट्रक ले आए हैं। पापा बगल में लेट गए हैं... भाईसाहब खिलौना पापा के पेट पर चलाते हुए सो जाते हैं।
इनके सोने के बाद पापा मम्मा को फोन फोन करते हैं... मम्मा आंसू बहा रही है... पापा दिलासा देते हैं... इस तरह मुश्किल भरा तीसरा दिन भी निकल जाता है।
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