यहां कविता उतनी ही कम है
जितनी सांसों में शुद्ध वायु,
रात में नींद,
मुंह में राम वालों के
हृदय में राम नाम का मर्म.
और मेरे अंदर बचा रह गया तुम्हारे प्रति प्रेम.
जितनी सांसों में शुद्ध वायु,
रात में नींद,
मुंह में राम वालों के
हृदय में राम नाम का मर्म.
और मेरे अंदर बचा रह गया तुम्हारे प्रति प्रेम.
यहां कविता नहीं है
कुछ सच हैं,
जो शब्दों में बदल जाते हैं.
जैसा तुम्हारे स्पर्श से मैं बदल जाता था.
जैसे सरकारी आंकड़ों में देश की तस्वीर बदल जाती है.
कुछ सच हैं,
जो शब्दों में बदल जाते हैं.
जैसा तुम्हारे स्पर्श से मैं बदल जाता था.
जैसे सरकारी आंकड़ों में देश की तस्वीर बदल जाती है.
जितनी मेरे अंदर नहीं बची हो तुम,
इसमें बस उतनी सी कविता है.
इसमें बस उतनी सी कविता है.
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