Saturday, April 8, 2017

बिछोह

उन खतों को जिनमें मेरी खुशबू बसी है
सिरहाने रख वो मेरी छुअन महसूस करती है.

एक टैडी कत्थई सा, सीने से लगा
माथे को चूमता हूँ
जैसे उसकी मांग में भरा सिन्दूर होंठों से लगाया हो.

शोक का एक गीत बज उठता है
काली रात में मधुकामिनी के फूल
खुशबुएँ बिखेरते रो देते हैं.

बिछोह अगर आदमी होता
पिघल के मर गया होता
उस रात इतने गर्म आंसू गिरे थे.

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... अनोखे बिम्ब और ख्याल की अदायगी ऐसी की सीधे दिल से दिमाग में ... लाजवाब ...