Friday, April 8, 2016

तुम्हारे होंठों पे ज़िगर रख के

तुम्हारे होंठों पे ज़िगर रख के मैं
बाजुओं से
मसलना चाहता हूँ सांझे पल.
ढूंढना चाहता हूँ
आँखों में शबनम
सुबह के हिस्से का सूरज.

खुरदरा सा सूरज
उफन कर
सीने से लग जाता है.
जैसे उसकी मुक्ति वहीं हो.

तुम्हारे गालों को
मुट्ठियों में जकड मैं
खुद को कैद करने की
अधूरी ख़्वाहिश पूरी करता हूँ.

इत्तेफ़ाक़ से,
तुम बिलकुल तुम हो.
मेरे सीने से लग के भी
मुझसे दूर जाने के सपने देख लेते हो.
बंद आँखे किये.

तुम दूर जा के फिर मेरे ख़्वाब देखते हो.

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