मैंने पढ़े कई लेखक
और उनका चिंतन.
फिर मैंने सारा का सारा जला दिया.
और दिमाग से निकाल दी
उनकी कही बातें.
उनका खुद का जीवन भरोसे के लायक न था.
न उनका चिंतन देश, दिशा बदल सकता था,
न उनका पेट भर पाया,
न मेरा भर सकता था.
मैंने अब रोटी जुगाड़ने के तरीकों की किताब खरीदी है.
1 comment:
मन को छूती यथार्थवादी पंकितयां!!
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