Friday, June 26, 2015

मैंने पन्नो को जुड़-जुड़ मजबूत होते देखा है,


मैंने पन्नो को जुड़-जुड़ मजबूत होते देखा है,
इतना मजबूत की तुम फाड़ नहीं सकते चाह के भी
हाँ, निकाल सकते हो एक-एक कर
या काट सकते हो कुछ एक.
लेकिन बीच से पकड़ मरोड़ना भी मुश्किल होता है,
फाड़ना तो दूर रहा.

जब पन्ने बनते हैं मिल किताब
मैंने उन्हें मजबूत होते देखा है.

उतना,
कि जितना सरकारों ने नहीं सोचा होगा.
कि चंद पन्ने स्याही से मिल किताब बनेंगे
और सरकारें गिरा देंगे.

उतना,
कि चंद पन्ने स्याही से मिल इतिहास लिखेंगे
और कुकृत्य पीढ़ियों को बता देंगे.

उतना,
कि पुस्तकालय जला देने के बावजूद
पन्नों के सीने पे लिखा सच कभी नहीं मिटाया जा सका.

उतना,
कि इक सीने की आग भड़का
कई तक पहुँचाया
और क्रांति ला दी.

मैंने पन्नो को जुड़-जुड़ मजबूत होते देखा है, किताब बनते देखा है.
तुम कब मिल किताब बनोगे, कॉमरेड?

No comments: