Monday, May 18, 2015

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जो वर्षों बाद भी अतीत में हों और उनका भविष्य अनसर्टेन... उनके साथ ‪#‎ख्वाब‬ नहीं सजोंये जाते... आपकी ख़ामोशी में ढेर सारे लफ्ज़ होते हैं जो कानों में गूंज जाते हैं... जिनके मतलब मैं जानना नहीं चाहता. बस कभी-कभी कहते-कहते आपका खामोश होना अच्छा लगता है. जैसे आप नदी हो कोई, यकायक से हो गई हो शांत और मैं चुप-चुप ही वादियों के बीच धीमी सी कल-कल सुन रहा हूँ... गुपचुप-गुपचुप.
मैं सागर हूँ, किसी दिन मिलना ही है नदी को... शायद किसी और नदी के रस्ते... यमुना का गंगा से हो सागर तक पहुंचना या झेलम का सिंधु के रस्ते.. लेकिन नदी को मिलना ही है सागर से. फिर भी, जो वर्षों बाद भी अतीत में हों और उनका भविष्य अनसर्टेन... उनके साथ के ख्वाब नहीं सजोंये जाते...
‪#‎लप्रेक‬

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