Tuesday, August 12, 2014

घास का स्केच


तुम हरी घास हो
जिसपे बैठ दो सुकून के पल बिताना चाहता हूँ.
शबनम की महक महसूस करता हूँ.
एक दौर से मैंने कोई पेंटिंग नहीं की
तुम्हें ही रंगता रहा मैं.
मैं भिखारी नहीं जो रिश्ते मांगता,
आज नया स्केच बनाया है
जला के तुम्हें.
'भारत भवन' में लोगो ने कहा
'अब तक का सबसे खूबसूरत काम.'
तुम्हारे खून के धब्बे किसी को नहीं दिखे
न मेरा ताप!

खीझ जाता हूँ कि
इस दौर के लोगों को कविता समझ नहीं आती.
मेरी तो बिलकुल न आएगी.

पोपले मुंह मैं बैठना चाहता हूँ,
शबनम कि महक लेना चाहता हूँ.
ये घास तू भी तो पीली पड़ गई है.