ज़लज़ले की रात
ज़लज़ले की रात
दुनिया ने बांटा सामान,
मेरे हिस्से में आई एक किताब
जिसक आखिरी पन्ने पे लिखा था-
'ज़लज़ला अच्छा-बुरा देखकर नहीं आता,
कुत्तों की कोई जात नहीं होती,
लोग कभी अपने नहीं होते, मौत अपनी है!'
उस रात ज़लज़ले ने
मुझे कम, रिश्तों को ज्यादा ख़ाक किया.