Sunday, September 1, 2013

बात इतनी सी है बस

बात इतनी सी है बस
कि औरत मरती है सुबह से शाम,
खपती है
चूल्हा-बर्तन से लेकर
सड़क पे ईमानदारी से घूरते हम-आप के 
बीच से गुजरते हुए.
बॉस को अक्सर
ऑफिस की औरतें 
सपने में हमबिस्तर नज़र आती हैं.


सरेआम छेड़ते, 'फील' करते 
चुपचाप लोग.
हर दिन ही कनखियों से  'रेप' करते
लोगो के सामने से हर दिन निकलती है.


बात इतनी सी है बस
कि कोख से कब्र तक
औरत की आत्मा पे
ढेरों घाव होते हैं,
जिन्हें गिना नहीं जा सकता.


बात इतनी सी है बस
बात घावों की है बस
बात औरत की है बस,
जिसे दोयम दर्ज़े का तुम्हारा ईश्वर भी 
बनाकर भूल गया सा लगता है.  

बातें इतनी सी हैं बस,
फिर क्यूँ मैं लिख रहा हूँ कविता
छोटी-छोटी बातों पे. 
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बात इतनी सी है बस
कि इक पौने अठारह साल का लड़का
करता है घिनौने कृत्य,
फिर भी कानून 'दूध पीता अनजान' है!    #Juvenile_Justice

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बात इतनी सी है बस
कि इक बहत्तर साल के देवता से भी
हमारी तेरह साल की बेटियाँ
सुरक्षित नहीं हैं.               #AsaramBapu

बात इतनी सी है बस,
कि हम खुद शैतान हैं
और शैतान को पूजते हैं.

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

और ये सब बातें लोग बहुत आसानी से भूल जाते हैं ... बात बस इतनी सी है ।

दिगम्बर नासवा said...

प्रखर, पैनी दृष्टि है आपकी ... दिल के दर्द, क्रोध ओर गम को सहज लिखा है ..

Dr ajay yadav said...

मार्मिक लेखन |
सटीक परिद्रश्य का शब्दांकन |
डॉ अजय
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