Tuesday, April 23, 2013

भाई





मैं कहता हूँ
बूढ़े बरगद पे साया है कोई.
लेकिन जुदा हैं उसके ख्याल.
हमारे ख्याल,
जैसे एक ग़ज़ल के दो मिसरे
जुड़े हों ग़ज़ल से
पर कहते हों अलग-अलग सी बात.

अहसास होता है
वो भी बालिग हुआ है,
समझने लगा है कि साये नहीं होते.

बड़े भाई होने की धौंस अब नहीं चलेगी. :-)


4 comments:

VIVEK VK JAIN said...

दु:ख होता है जब लोग सिर्फ इसलिए कमेंट्स करते हैं की हम उनका लिखा भी पढ़े..... इसलिए सर 'शानदार', 'बहुत अच्छा' जैसे कमेंट्स से तंग आकर कमेंट्स का ऑप्शन बंद किया था........ पर शायद ज़रूरी है कमेंट का ऑप्शन, क्यूंकि कुछ लोग हमेशा आपको अप्रीसियेट करना चाहते हैं. थैंक यू रश्मि रविजा जी.

drRONAK said...

vivs ji kuchh v palle nhi pdha hmare to

VIVEK VK JAIN said...

of comment or jo likha wo.

अंतस said...

वैसे तो मेरा कोई सगा भाई नहीं है लेकिन इस कविता ने मेरे अवचेतन में न जाने कितने रिश्तों की समीक्षा कर डाली। कुछ भूले बिसरे नाम भी याद दिल दिए.....। कमाल लिखते हो यार।