मैं कहता हूँ
बूढ़े बरगद पे साया है कोई.
लेकिन जुदा हैं उसके ख्याल.
हमारे ख्याल,
जैसे एक ग़ज़ल के दो मिसरे
जुड़े हों ग़ज़ल से
पर कहते हों अलग-अलग सी बात.
अहसास होता है
वो भी बालिग हुआ है,
समझने लगा है कि साये नहीं होते.
बड़े भाई होने की धौंस अब नहीं चलेगी. :-)
4 comments:
दु:ख होता है जब लोग सिर्फ इसलिए कमेंट्स करते हैं की हम उनका लिखा भी पढ़े..... इसलिए सर 'शानदार', 'बहुत अच्छा' जैसे कमेंट्स से तंग आकर कमेंट्स का ऑप्शन बंद किया था........ पर शायद ज़रूरी है कमेंट का ऑप्शन, क्यूंकि कुछ लोग हमेशा आपको अप्रीसियेट करना चाहते हैं. थैंक यू रश्मि रविजा जी.
vivs ji kuchh v palle nhi pdha hmare to
of comment or jo likha wo.
वैसे तो मेरा कोई सगा भाई नहीं है लेकिन इस कविता ने मेरे अवचेतन में न जाने कितने रिश्तों की समीक्षा कर डाली। कुछ भूले बिसरे नाम भी याद दिल दिए.....। कमाल लिखते हो यार।
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