देश को लोग कितना बांटना चाहते हैं इसका जवाब तो उनके पास भी नहीं है, जब तक उनका उल्लू सीधा होता रहेगा तब तक लोग बांटते रहेंगे. कल 'आज तक' ने कहा की देश की कुल 78 लोकसभा सीटों पर बीजेपी को उम्मीदवार के बारे में सोचना पड़ेगा क्यूंकि यहाँ 20% से ज्यादा मुस्लिम वोट हैं.....शायद एसे सर्वे ३० साल पहले तक नहीं होते होंगे, कोई भी अखबार नहीं कराता होगा (प्राइवेट न्यूज़ चैनल तो थे नहीं उस वक़्त.) मतलब कायदे से ये देश अघोषित ही सही मुस्लिम-इंडिया और हिन्दू-इंडिया में बांटा जा चुका है.
एक और बयान आया है, अप्रत्याशित और थोडा सा अजीब. मुलायम सिंह यादव ने कहा है की 'मंगल पाण्डेय' ब्राह्मण थे. ये ब्राह्मण वोटों की ओर उनका एक और कदम है, लेकिन मंगल पाण्डेय ने मरने से पहले जाति नहीं सोची होगी, न ही अशफाक उल्ला खां ने अपना धर्म और न ही किसी और क्रन्तिकारी ने...लेकिन आजादी के 66 साल बाद सबकी जाति चुन चुन कर निकली जा रही है. जैसे उनका सरोकार देश के लिए जान देने से ज्यादा जाति से था. पहले ही राजनीति देश को धर्म के नाम पे बाँट चुकी है और जाती के नाम बाँटने की कोशिशे पिछले 20 सालों से जोर-शोर पर हैं और आश्चर्य नहीं कि शायद कोशिशें कामयाब हो जाएँ, अगर हम सम्हले नहीं तो.
हमारा सम्हलना इतना आसान नहीं है, क्यूंकि मैं जहां जॉब करता हूँ वहां ''सो काल्ड'' देश के बेहद पढ़े लिखे युवा इंजीनियर्स काम करते हैं.... लेकिन सच तो ये है, उनकी सोच भी धर्म, जाति और 'क्षेत्र' से आगे नहीं जाती....और जब देश का पढ़ा-लिखा युवा एसा हो सकता है तो देश की अनपढ़ या अर्ध-पढ़ी-लिखी जनता के ख्यालों का अंदाजा हम लगा सकते हैं.... और लोगों की सोच अगर एसी है भी नहीं तो मनिपुलेट करना आसान होगा.... क्यूंकि पढ़े-लिखे लोगों की सोच में भूसा भरा जा सकता है तो अनपढ़ों में तो और भी जल्दी.
दरकार हमें खुद बदलने की है, पढ़े-लिखे युवाओं को खुद की सोच बदलने की है और बाकि की आबादी की भी, दरकार राजनीति से दूर भागने की नहीं राजनीति में प्रवेश कर राजनीति बदलने की है और जैसा की इतिहास कहता है क्रांति हमेशा चेतनशील युवा मध्यम वर्ग लाता है तो हमें चेतने की ज़रूरत है.
-- VIVEK VK JAIN
(Note: लेखक एक MNC में इंजिनियर है. प्रस्तुत विचार लेखक के व्यक्तिगत लेकिन परिवेश से प्रेरित हैं. )