काटजू साहब, मैं आपका कोई बहुत बड़ा फैन नहीं हूँ न ही आपका क्रिटिक, बस रेगुलर रीडर हूँ, जिसे आदत है कुछ लोगों को पढने की. मैं आपके ब्यान से इत्तेफाक रखता हूँ या नहीं, ये दूसरी बात है लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ आपको कहने का हक है. प्रेस कौंसिल के चेयरमैन को क्या बोलना चाहिए या क्या नहीं ये रूल न तो IBN के आशुतोष बना सकते हैं न बीजेपी या कांग्रेस। आपका बयाँ हिस्ट्री प्रेरित था राजनीति नहीं. देश में घटी बड़ी घटनाएँ बिना राजनैतिक सपोर्ट के नहीं हो सकती ये अप भी जानते हैं, जनता भी, कांग्रेस भी, बीजेपी भी.
सबको पता है 1984 के बाद के दंगों में अनौपचारिक रूप से सरकार ने सपोर्ट किया, 1992 बाबरी ढही, अब तो कल्याण सिंह भी मान चुके हैं की उन्होंने ये सब होने दिया.
सर, गलती आपकी नहीं है, देश के उन 60% गधों की है, जो छोटे-मोटे बयानों से परेशां हो जाते हैं लेकिन देश की 50% भूखी जनता के बारे में सोचने का ख्याल उन्हें नहीं आता. गलती उन पढ़े लिखे मूर्खों की है जिनमे समझने की अक्ल नहीं है.
आपके एजुकेशन सिस्टम, ज्यूडिसरी सिस्टम, देश की गंभीर समस्यायों पे किये गये कमेंट्स की बजाये आज जिन मुद्दों पे आपको घेर गया वो गलत है.
देश का नागरिक कोई सा वस्त्र पहिन ले रहेगा देश का ही....और देश का नागरिक होने के नाते आपकी टिपण्णी जायज है.
मैं नरेन्द्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व से प्रभावित हूँ, लेकिन ये मुद्दा न मोदी का न बीजेपी का न कांग्रेस का. ये सीधी-सीधी एक नागरिक होने के नाते कही गयी बात है, जिसे रखने का हक हम सबको है. आपको भी, मुझे भी.
सॉरी आशुतोष, जिस 'अग्रेस्सिव वे' में आपने बोला, वो आपकी 'आप बेवकूफ हैं' ज़रूर कहता है.
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