Thursday, February 21, 2013

पैकिंग करते-करते



                   पैकिंग करना आसान नहीं! हर चीज़ से जुड़े रहते हैं ख्याल, यादें और लोग, जो बरबस ही याद आते हैं. महीनों से सम्हाल रखा गया वो दस रूपये का सिक्का, जो तुमने दिया था.....देखो, वैसा ही तुम्हारे पास भी है. सोचता हूँ, तुमने अब तक सम्हाला होगा उसे? उम्मीद कम है मुझे! 'की रिंग', महीनों से सोच रहा हूँ की निकाल दूँ...हिम्मत ही नहीं हुई. अक्सर उसपे लिखे 'you' में तुम दिख जाते हो मुझे. क्या तुमने भी अज़ीज़ बना सम्हाला है उसका आधा हिस्सा? 

                   ये 'टेडी' वो 'पिंक स्टोल' अक्सर छू लिया करता था मैं. आज पैक किया तो बड़ी हिम्मत लगी उठाने में. 'टेडी' आज भी बड़ा नर्म लगता है मुझे. 'हग' किया तो तुम्हारी याद आ गयी! 'पिंक स्टोल' तो तुम्हें याद भी नहीं होगा....याद है बस से उतर रहे थे तुम और मैंने छीन लिया था.....अब वो मेरे 'कपबोर्ड' में सामने टंगा रहता है. 

                तुम्हारे 'ग्रीटिंग्स', 'डायरी' खोले नहीं मैंने, जैसे थे, वैसे 'पैक' कर दिए. हिम्मत नहीं थी. एक बार लगा, सब बेमतलब है अब, उठा के फेंक दूँ कचरे में....लेकिन, तुम्हें पता है मैं फालतू का सेंटी इन्सान हूँ!    
               'विंड चाइम' जिसपर मेरी 'पिक' भी है.....'कपबोर्ड' से छांकता था, जब भी खोलो....बड़ी शिद्दत से पैक करना पड़ा....रिश्ते कि तरह उसके भी टूटने का डर था! 

               'डार्क शर्ट्स', बहुत सी गिफ्ट की हैं तुमने...और अब तो 'डार्क' ही खरीदता हूँ....तुमने कहा था, अच्छा लगता हूँ. अब तो मुझे भी यकीं होने लगा है. अम्बार था, सारे 'शर्ट्स' समेटते-समेटते दिन लग गया!

              'शिर्डी' से 'साईं बाबा' की एक मूर्ति तुम्हारे लिए भी लाया था, सोचा, कहीं मिले तो दे दूंगा, यहीं छोड़ के जा रहा हूँ....शायद मिलना नहीं मुझे, या शायद यकीं है की तुम्हारी ही हिम्मत न होगी मिलने की.

              ये 'वाच', सच तो ये है मुझे अभी पता चला कि घड़ी गिफ्ट करने से रिश्तों के अच्छे दिन ख़त्म हो जाते हैं...पता होता तो कभी गिफ्ट न करता....ना ही तुमसे लेता. 'मिनट' की सुई खराब है इसकी, लेकिन नई लेने के बावजूद पहनता इसे ही हूँ.... पता नहीं क्यूँ, मन नहीं है की किसी और का हाथ लगे, तो सुधरवाया भी नहीं और कभी उतारा भी नहीं.

             सोचता हूँ, तुमने कैसे सम्हाली होंगी मेरा दिया सामान? यहाँ मुझे किसी को जवाब नहीं देना, लेकिन तुम्हें? इत्तेफाकन देख लिया किसी ने तो? कभी तो तुम छूते होगे उसे....शयद बहुत कुछ तो कचरे में फेंक दिया होगा तुमने. कहाँ-कहाँ ले के जाओगे तुम? 'हॉस्टल' से घर फिर किसी और के घर.............

            तुमने कहा था, अब नहीं पढ़ते तुम मुझे....URL नहीं बदला 'ब्लॉग' का, क्यूंकि मुझे तुम पे यकीं है....कि तुम ये भी नहीं पढ़ोगे.

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सी यादों को समेटे हुये लिखा है ... भावात्मक प्रस्तुतीकरण

PD said...

हम्म....