ख़ुशी
वो मिले मुझे
तो गिरेबाँ पकड़ मांग लूं गम,
अब ये ख़ुशी बर्दाश्त नहीं होती!
लिखते-लिखते सुफियानापन आ गया है!!
धूप
धुल-धुल के चमका दिया रौशनी ने,
पड़ोस से एक सितार और मांग ला.
गुनगुनाती सुबह मैं तुझे
इश्कियाना गीत की ज़रुरत है!
अवसाद
मुंडेरें बची होती तो
कह पाता कभी,
'मैं पंछी हूँ मुंडेरों का'.
चमकती इमारतों के बीच,
टूटी झुग्गी सा लगता हूँ मैं,
जैसे कोई सारे रंग चुरा ले गया हो!
आदमियत
गणेशजी पूज लिए सोते वक़्त,
अब भरोसा नहीं रहा आदमियत पे,
क्या पाता कौन बारूद
सांस खींच ले नींद में ही!
इश्क
तेरे इनकार को कैसे मैं मान लूं!
आँखें तो इरादे और कह रही हैं,
जैसे नींद के आगोश में भी,
सपने मेरे देखे हों.
चांदनी से बनाई हो,
मेरी उजली तस्वीर.
....और आखिर में
पन्ने के पन्ने काले कर दिए हों,
मजबूरी की स्याह से!
फिर भी मंजूर है मुझे तेरे हर फैसले!
......क्यूंकि तेरे इरादे तो सही हैं.
7 comments:
nice blog... have a view of my blog when free.. http://www.arvrocks.blogspot.com .. do leave me some comment / guide if can.. if interested can follow my blog...
shandaar mere bhai, shandaar, ultimate..kya baat kya baat
amazing...each of your expressions have some unearthly charm... Cheers!!!
.."फिर भी मंजूर है मुझे तेरे हर फैसले!
......क्यूंकि तेरे इरादे तो सही हैं...." अच्छा लगा आपको पढना.. क्षणिकाएं बेहतरीन हैं..
क्या पाता कौन बारूद
सांस खींच ले नींद में ही!....kya likha hai....it hit with a bang!!!
पन्ने के पन्ने काले कर दिए हों,
मजबूरी की स्याह से!....how thoughtful!!
bhai if you could slightly maintain the continuity in flow of ideas it wud be better
if u cud maintain the flow of ideas in writing it wud be better
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