1.
दूर जाना चाहूँ तो,
आफतों की तरह
इठलाती आती है तू!
जैसे मुझपर सिर्फ तेरा हक है!
मुस्कुराता हूँ मैं,
आफतें भी अच्छी लगती हैं फिर!
2.
भूलना चाहूँ तो,
धुंए की तरह
छा जाती है तू!
तेरी यादों के धुंध से,
भर जाता हूँ मैं!
3.
रुलाना चाहूँ तो,
खिलखिलाती है तू!
जैसे रातरानी झड़ रही हो चाँदनी मैं!
बचपन की बिसरी सी,
परीकथाएँ सच लगने लगती है फिर!
4.
छूना जो चाहूं तो,
छुईमुई की तरह
शर्माती है तू!
अचंभित मैं!
बस देखता रह जाता हूँ तुझे.
5.
पाना चाहूँ तो,
बादल की तरह
भिखर जाती है तू!
बूंदों से सरोबार,
पुलकित हो उठता हूँ मैं!
6.
हँसाना चाहूँ तो,
ढले सूरजमुखी की तरह
मुरझाती है तू!
मैं घबराता हूँ तो,
मेरी हालत पे खिलखिलाती है.
ज्यों सूरज फिर उग आया हो!
7.
सरबती पलों में कभी,
लहरों की तरह बह जाती है तू!
तट पर ठिठुरता मैं,
बस राह तकता रह जाता हूँ !!
6 comments:
बहुत सुदर कवितायें.. छोटी कवितायें, गहरी अभिव्यक्ति !
sunder ahsasokee sunder abhivykti......
Very very nice.. I love it.
Have a wonderful Day!
Love
Sabi Sunshine
bahut sunderta ke saath likhi hai.
wow....this was really good.....
रुलाना चाहूँ तो,
खिलखिलाती है तू!
जैसे रातरानी झड़ रही हो चाँदनी मैं!
बचपन की बिसरी सी,
परीकथाएँ सच लगने लगती है फिर!
what an imagination....hats off!
it is a nice nice nice post :-) :-)
Once it becomes habit of some one or anything,it can't be changed quickly or might be not.
but possibilities are there if you have the self confidence :-)
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