Sunday, November 8, 2009

(बहुत से लोग लिख डालते हैं एसा जो बहुतों कि आत्मा कि आवाज़ होती हैं, जो सभी कहीं न कहीं कैसे भी, किन्ही भी शब्दों में व्यान करना चाहते है, एसे ही 'संध्या सिंह- virgin island UK' भी लिखती है, उन्ही कि कविता 'उफ़!! ये रात' कि चंद पंक्तियाँ.)

अब इतना भी न खींचो
बहुत खीच लिया तुने
अब टूटने के कगार पे
आ पहुंची हूँ मै
अबकी बार टूटी तो
कभी न जुड़ पाऊँगी मै

मेरी तरसी हुइ आँखों में
जो पल कुछ तुने दिये
मुझे पता है
तुम जिन्हे देखोगे तो कहोगे
उफ़ ! ये आँसू तुने कैसे पिये!!!!

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