सिसकती रही रूह, दरकता रहा बदन.
मिट्टी में मिल गए, जो किये जतन.
तड़पा दिया हद से भी कही ज्यादा,
मत खींचो, अब होता नहीं सहन!
श्यामल पड़ गई देह, अंधी हुई आँखें,
ख्वावों में सिसकती-तड़पती रातें,
मंजिल, दिल कि परछाई से वाकिफ,
पहले तुझसे, अब मौत से करती मुलाकातें.
दर्द जो तुमने कभी कितना सहा,
कर दो जोड़ के लाख गुना,
अब देखो, दर्द ये मेरा हुआ,
देखो, यहाँ है कितना धुंआ !!!!
मत देखना मुझको, मेरी ओर कभी,
दर्द के धुंध सिवा कुछ दिखेगा नहीं,
सोचो, मैंने क्या कितना सहा,
फिर भी तू दिल से कभी निकली नहीं.
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लौटने कि आस क्या बकवास है?
पाने कि आस है या वनवास है?
कुछ तो कहो प्रियवर एहसास से,
ये ज़िन्दगी है मेरी न कि ताश है!!!!!
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